
युगवाणी (शुरुआत1947)। उत्तराखण्ड आंदोलन को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण पाठ।
संदर्भ आज- लिखा-छपा था अक्टूबर 2019 में गौर फरमाइए
दृश्य-एक,
सरकारी दफ्तर में अफसर के सामने नौकरी के लिए खड़ा पहाड़ी युवक।
अफसर- अच्छा-अच्छा, आप उत्तराखण्ड के मूल निवासी हैं। कब से,,
युवक- जी मेरे माता-पिता, दादा, परदादा और,,,
अफसर- वेरी गुड, वेरी- वेरी गुड। अच्छे लोग रहे होंगे। इसीलिए तो कहते हैं पहाड़ी लोग सीधे-सादे होते हैं। वरना आप जैसे काबिल युवक यहां उत्तराखण्ड में छोटी- छोटी नौकरियों के लिए हाथ पसारे भटकते। बहुत बढ़िया, तो आप मूल निवासी हैं।
युवक- जी, मुझे यह नौकरी मिल सकती है !
अफसर-जरूर मिल सकती है। लेकिन आपका स्थाई निवास प्रमाण पत्र कहां है?
युवक-सर, मूल निवास प्रमाण पत्र तो दिया है।
अफसर- किस दुनिया में रहते हो! मूल निवास से क्या होता है। दस-बारह साल की बात अलग थी। तब दोनों (मूल और स्थाई ) चल जाते थे। अब नहीं चलते। आवेदन करने से पहले जानकारी नहीं ली क्या ?
युवक- लेकिन सर, मैं तो मूल,
अफसर- देखो भाई, दुनिया कितनी बदल चुकी है। अपनी जमीन से चिपके रहें, बात जंचती नहीं है। आपके मूल निवासी होने से उत्तराखण्ड को क्या भला? क्या आप चाहते हैं कि आपके बच्चे भी यहीं चिपके रहें। इससे तो उत्तराखण्ड की प्रगति कभी नहीं हो सकती है। स्थाई निवासी होने के नाते आप उत्तराखण्ड की जमकर सेवा करते। अपनी सारी कमाई जहां चाहे इस्तेमाल करते। ऊपर की कमाई जितनी नीचे मैदान में रिसती है उतनी फलदायक होती है।
सारा देश अपना ही है।
युवक आखिरी उम्मीद से, सर, मेरे पिताजी उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी थे।
अफसर- अच्छा। प्रमाण पत्र है?
युवक- सर, वह तो सरकार ने इसी नाम के किसी और को दे दिया है।,,
संशोधित अंश, जारी…।