
उत्तराखंड
कुमाऊं की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी का स्वाधीनता आंदोलन में योगदान राष्ट्रीय फलक पर चर्चा में आ गया है।राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने उत्तराखंड प्रवास को पूरा करने के बाद ट्वीट कर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बागेश्वर की मूल निवासी बिशनी देवी साह के स्वतंत्रता आंदोलन में दिए गए योगदान को याद किया।राष्ट्रपति ने कहा बिशन साह ने स्वाधीनता संग्राम के दौरान अल्मोड़ा नगरपालिका भवन पर तिरंगा लहराया और गिरफ्तार की गई। वह साधारण परिवार की अल्पशिक्षित महिला थी लेकिन भारत के स्वाधीनता संग्राम को उनके द्वारा दिया गया योगदान असाधारण है।
बिशनी साह जेल जाते समय आंदोलनकारियों पर पुष्प वर्षा, तिलक लगाकर उन्हें विदाई देती और सत्याग्रहियों की गैर मौजूदगी में उनके घर परिवार की सहायता करने लगीं।तब मोती लाल अग्रवाल की खादी की दुकान से खादी के वस्त्रों को लाकर उन्होंने घर-घर जाकर महिलाओं को चरखा चलाना सिखाया। तब चरखा का मूल्य दस रुपये था, लेकिन बिशनी देवी के प्रयासों से महिलाओं चरखा पांच रुपये में मिलने लगा, इससे महिलाओं में उत्साह बढ़ गया।बिशनी देवी इस दौरान गोपनीय तौर पर पत्रवाहक का काम भी करती थीं। उनकी इन गतिविधियों को देखकर तत्कालीन समाचार पत्रों में लिखा कि समस्त उत्तर प्रदेश में अल्मोड़ा व नैनीताल आगे आए हैं। विशेषकर अल्मोड़ा में कांग्रेस कार्यकर्ता बिशनी की भूमिका बड़ी है।
12 जनवरी 1938 को अल्मोड़ा में बिशनी देवी समेत अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने सरकार विरोधी नारे लगाए और गरुड़ पहुंच गए। 26 जनवरी 1940 को अल्मोड़ा में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। जिसमें प्रात: दस बजे नंदा देवी प्रांगण में बिशनी देवी ने झंडारोहण किया।1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में बिशनी देवी ने खुलकर भाग लिया। शराब की दुकानों पर धरना दिया और विदेशी वस्तुओं की होली जलाई। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में बिशनी देवी ने अपनी अहम भूमिका से ब्रिटिश सरकार को आश्चर्य में डाल दिया कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली हैं।1945 में जब जवाहर लाल नेहरु व अन्य जब कारागार अल्मोड़ा से रिहा हुए तो वह उनको लेने के लिए कारागार के मुख्य द्वार पर गई और सरकारी अफसरों पर कटाक्ष किया। 15 अगस्त 1947 की शाम तीन बजे नंदा देवी अल्मोड़ा प्रांगण में बिशनी देवी के नेतृत्व में हजारों लोगों का जुलूस निकला और वह राष्ट्रीय ध्वज को पकड़े नारे लगा रही थीं।कुमाऊं में महिला समाज में राजनीतिक चेतना, महिलाओं के संगठित करने, सामाजिक सांस्कृतिक अधिकारों के प्रति प्रेरित करने का श्रेय बिशनी देवी को जाता है। प्यार से लोग उनहें बिशू बूबू कहते और इसी नाम से उन्हें इसी नाम से अधिक परिचित थे। 1974 में 93 साल की आयु में उनका देहांत हो गया। शव यात्रा में हजारों लोग शामिल हुए थे।