
उत्तराखंड
उत्तराखंड की सियासत में नए जिलों के गठन का मुद्दा नया बिल्कुल नहीं है। भाजपा, कांग्रेस यहां तक कि विधानसभा चुनाव लडने उतरी आम आदमी पार्टी ने भी नए जिलों के गठन का चुनावी वादा किया था। भाजपा ने हाल में अपने सांगठनिक जिलों की संख्या बढ़ाकर 19 कर ली है और अब सीएम पुष्कर सिंह धामी ने नए जिलों के गठन को लेकर बड़ा बयान दिया है।पहाड़ की भौगोलिक परिस्थितियों के चलते कुछ जिलों को काटकर नए जिले बनाने की मांग लगातार उठती रही है लेकिन 2011में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर चार नए जिलों डीडीहाट, रानीखेत, कोटद्वार और यमुनोत्री का एलान किया था। निशंक की घोषणा पर उनके बाद दोबारा मुख्यमंत्री बनाए गए जनरल बीसी खंडूरी ने शासनादेश भी जारी किया लेकिन नए जिले धरातल पर उतर नहीं सके। नए जिलों के शासनादेश का क्रियान्वयन होता उससे पहले चुनाव हो गए और सरकार कांग्रेस की बन गई। नए जिलों को लेकर उठ रही मांगों को लेकर तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा ने राजस्व परिषद के अध्यक्ष की अगुआई में तीन सदस्यीय कमेटी बना दी। बहुगुणा से कुर्सी छीन ली गई तो हरीश रावत ने भी जिलों को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया लेकिन नतीजा उनके कार्यकाल में भी कुछ नहीं निकला। उसके बाद भाजपा सरकार बनी लेकिन नए जिलों पर निर्णय नहीं हो सका। अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा है कि नए जिलों की मांग बहुत पुरानी है और वे इस पर जनप्रतिनिधियों से रायशुमारी शुरू करेंगे ताकि नए जिले बनाए जा सकें। जाहिर है मुख्यमंत्री धामी ने नए जिलों को लेकर मास्टरस्ट्रोक खेल दिया है और अगर वे इस दिशा में आगे बढ़ गए तो वर्षों से लंबित कई क्षेत्रों की जनता की उम्मीदों को नए पंख लगेंगे। लेकिन सवाल यही कि नए जिलों यानी नई प्रशासनिक इकाइयों का गठन मतलब खर्च का नया बोझ बढ़ाना भी होगा।अगर सीएम धामी प्रधानमंत्री मोदी से मंजूरी ले आते हैं तो डबल इंजन सरकार में वित्तीय भार का रास्ता आसानी से निकल सकता है।