
पौड़ी में अनशनकारी उक्रांद नेताओं की सात-आठ अगस्त 1994 की रात गिरफ्तारी और उस दौरान पुलिसिया बर्बरता के खिलाफ उत्तराखण्ड आक्रोश की आग से सुलगने लगा था। शिक्षक, कर्मचारी भी कैसे अछूते रहते! आरक्षण, पंचायतों का परिसीमन, वन संरक्षण अधिनियम और हिल कैडर आदि मुद्दों का एक ही समाधान-
पृथक उत्तराखंड राज्य, यह मानकर आबालवृद्ध नरनारी सड़कों पर आ गये थे। कर्मचारी, शिक्षक भी 20 सितंबर को सीधे आंदोलन में कूद गए थे।
लेकिन राजनीति ? आरक्षण विरोधी, आकाशबेल सा स्वतः स्फूर्त ,स्वायत्त परिषद जैसा समाधान ये सब जुमले उछालकर आंदोलन को तोड़ने-भटकाने के लिए तमाम षडयंत्र रचे जा रहे थे। एक उदाहरण यह भी है-
उत्तराखंड अंशात क्यों न रहे – हरीश लखेड़ा
नव भारत टाइम्स 5 अक्टूबर 1994।