भौंकुछ – विक्रम बिष्ट

     फुर्सत हो तो शुभकामनाओं के साथ एडवांस में बधाई स्वीकार कीजिएगा। फिर मौका मिले न मिले। तीन साल यूं ही निकल जाएंगे, पंगत में इंतजार करते- करते। अजी यह न पूछिए किस चीज की ? थोड़ा सब्र कीजिए, सब्र का फल मीठा होता है। वर्षों से चबा-चबाकर ,,,, मजे ले रहा हूँ। इतना चबा कि ठीक से शब्द नहीं निकल रहे हैं।

चलो याद दिला देता हूँ, अपना उत्तराखण्ड सर्वश्रेष्ठ राज्य बनने वाला है। वह भी तीन साल में। यह न कहिए कि कौन सी नई बात है। सभी तो लगातार वादे- दावे करते आ रहे हैं।
जनाब यही तो फर्क है। वे तो दावे और वादे कर रहे हैं। दावों की हवा कौन कब किधर से निकाल ले, और वादों का क्या, वह एक पुराना फिल्मी गीत है न, कसमें, वादे, प्यार, वफा सब ,,, वादे हैं वादों का क्या…
लेकिन इस बार देववाणी हुई है। कथन आम लोगों को आसानी से समझ में आये और वे पूरा विश्वास करें, इसके लिए किसी अदृश्य अनुवादक श्रवण यंत्र की जरूरत नहीं होती है। मिलावट की कोई गुंजाइश नहीं है। इसलिए ले लीजिए।
और, सोचिए, कुछ हसीन-रंगीन सपनों में विचरण करने का प्रयास कीजिए। सर्वश्रेष्ठ राज्य में आनंदस्थल तक जाने के लिए पिछवाड़े के दरवाजे नहीं होंगे। सीधे छप्पर फाड़ एण्ट्री होगी। प्रतिस्पर्धी दिल्ली, बिहार के देसी नहीं समन्दर के ठेठ आर-पार के पहुंचे हुए होंगे। वनंत्रा श्रृंखला पर्याप्त संख्या में तैयार हो जाएगी। बाधाएं मिटाने के लिए बुलडोजर और दुनिया भर के लिए बेमिसाल पावर इनवर्टर और भी पावरफुल होंगे। वे जो कोठरी में हैं और अंतर्ध्यानमग्न वीआईपी हैं, उन और उन जैसों के मुक्त विचरण के लिए पुलकित पल्लवित वातावरण तैयार होगा। महज तीन साल में?
क्यों शक, एक तो देवभूमि और ऊपर से सर्वश्रेष्ठ राज्य, दिल्ली थोड़े कि उत्तराखण्ड को अपनी अस्मिता के घावों पर तेजाबी न्याय के लिए दशक तक इंतजार करना पड़े।
आओ ! नहीं, जाओ वीरों स्वागत के लिए शाल- माल लो।
नहीं तो लाइसेंसी दुकान से 10-20 रुपए अतिरिक्त देकर पव्वा, अधा पीकर लमलेट हो गम भूल जाओ कि कभी तुम ही थे जो सचमुच इस राज्य के लिए लड़े थे। आखिर आबकारी विभाग भी तो उसी सरकार का है।

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