पाठ्यक्रम में राज्य आंदोलन को शामिल करने की सरकार की घोषणा का खुले दिल से स्वागत – विक्रम बिष्ट

टिहरी

उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की राज्य आंदोलन को पाठ्यक्रम में शामिल करने की घोषणा का खुले दिल से स्वागत होना चाहिए। आज हमारे पास जो भी है, बीते कल की धरोहर है, और हम भविष्य के प्रति उत्तरदायी हैं। व्याख्या चाहे जिन शब्दों में करें।
यह शुभकार्य कब से शुरू किया जाएगा इसकी प्रतीक्षा रहेगी। आंदोलन के इतिहास लेखन का कार्य किस स्तर पर है, हमें पता नहीं है। 22 अक्टूबर 2008 के शासनादेश के अनुसार, ‘ राज्य आंदोलन के इतिहास को संकलित , संरक्षित एवं स्मारक स्थलों की भली भांति रख-रखाव हेतु संस्कृति विभाग को अधिकृत किया जाता है।’ शायद इसलिए ही इतिहास से छेड़छाड़ की आशंकाओं को बल मिलता है। उम्मीदें हैं ये शंका निर्मूल साबित होंगी और प्रयास स्वयं ऐतिहासिक, सार्थक होंगे।
इसी शासनादेश में राज्य आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण के मानकों का उल्लेख है।
( क ) एल.आई. यू. की रिपोर्ट।
(ख ) पुलिस के अन्य अभिलेख यथा डेली
डायरी के प्रासंगिक अंश,
(ग ) प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ. आई.आर)
जिस रूप में भी दर्ज हो,
(घ ) चिकित्सालय सम्बधी रिपोर्ट,
(च ) ऐसे अन्य अभिलेखों पर आधारित
सूचनाएं जिनकी प्रमाणिकता
जिलाधिकारियों द्वारा पुष्टि की जाए।
इनमें समय-2 पर संशोधन भी किए गये हैं। कुछ का जिक्र पहले भी किया गया है। यह चिन्हीकरण के मानकों और प्रक्रिया से जुड़ा गंभीर प्रश्न है जिसे संभवतः न्यायिक परीक्षा से भी गुजरना पड़ेगा, परिणाम..!
मूल प्रश्न तो आंदोलनकारियों को चिन्हित करने के निर्णय और नीति को लेकर ही है। एक ओर इसे हम जनांदोलन कहते हैं और दूसरी ओर चुन-चुनकर आंदोलनकारी होने के प्रमाणपत्र । चिन्हीकरण के लिए 1979 आधार वर्ष भाजपा नीत सरकार ने ही फरवरी 2009 में तय किया है। पृथक उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के एकसूत्री लक्ष्य को हासिल करने के लिए 1979 में उक्रांद का गठन किया गया था, इसके अलावा आधार वर्ष के निर्णय का कोई और तार्किक आधार क्या हो सकता है ? यह राज्य आंदोलन का संगठित काया में प्रवेश का वर्ष है।
जड़ें तो उसके तीन दशकों से भी गहरी हैं। मध्यमार्गी स्वतंत्रता सेनानियों, कांग्रेस के भीतर के ही दक्षिण पंथियों- सामंतवादियों से लेकर धुर वामपंथियों तक, राज्य आंदोलन का सबसे लम्बा कालखण्ड।
यदि चिन्हीकरण के नतीजों को राज्य आंदोलन के इतिहास का मानक मान लिया जाता है तो इसका फैलाव राज्य निर्माण के वर्षों बाद तक आता है। प्रशासन से प्राप्त चंद जानकारी से ,,,,।
लेकिन जैसे पहले ही उम्मीद जताई है कि ये शंकाएं निर्मूल साबित हों। फिलहाल,

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