जोशीमठ त्रासदी- विक्रम बिष्ट

टिहरी
हल्द्वानी, जोशीमठ दोनों ज्यादातर के लिए त्रासदी हैं तो कुछ चालाकों के लिए अवसर । मनुष्यता की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि हर हालात में फायदे दूसरे तबके यानी अवसरवादियों की झोलियां भरते हैं। बेशक एकदिन झोलियां यहीं छूट जाती हैं।
हल्द्वानी में चार- साढ़े चार हजार परिवार एक रात, एक साल में नहीं बसे हैं। जो लोग इससे चुनावी अवसर की ताक में चीख-चिल्ला रहे हैं अपने-2 खेमों से, तराई की जमीन से बेदखल आदिवासियों की त्रासदी और वहां के घुसपैठियों की लूट पर चुप क्यों हैं ?
जोशीमठ बाल संन्यासी शंंकर की तपस्थली है। गद्दी के लिए कोर्ट में मुकदमे लड़ने वाले संन्यासियों की भी! वहां भी सात-आठ मंजिली इमारतें चन्द दिनों में नहीं उगाई गयी हैं। लेकिन उनका क्या दोष जिन्हें आज सर्द रातें अस्थायी ठिकानों पर बितानी पड़ रही हैं, कल का पता नहीं। वर्षों से कुछ लोग चेता – लड़ रहे थे। सुन समझकर समाधान की कोशिश किसने की ? उन्होंने तो बिलकुल नहीं जो कल सरकारों में थे या येन केन प्रकारेण सत्ताभोग में मस्त थे। झण्डे चाहे जिस रंग के हैं।
एक ही सबक है कि प्रकृति हो या लोकतांत्रिक राज और समाज वाजिब जरूरत का सम्मान सभी करते हैं। हवस का नहीं किया जा सकता है। वह अन्याय है।

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