
पांच-छह साल पहले मर्यादा पुरुषोत्तम राम और सत्यव्रती महात्मा गांधी के अनुयायियों के बीच घोड़ा व्यापार के राजनीतिक घमासान से उत्तराखंड ने जबरदस्त ख्याति प्राप्त की थी।
खास बात यह थी कि दोनों यानी भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पर अपने घोड़े खरीदने के आरोप लगा रही थीं।
राजनीति के इस कारोबार की खासियत यही है कि इसमें जिसके बिकते हैं उसकी अहमियत बेचारे जैसी होती है। कीमत और लाभ की वास्तविक जानकारी सिर्फ बिकने और खरीदने वाले को होती है।
इनकी प्यारी- दुलारी, देवतुल्य जनता तमाशबीन है। पांच साल में एक बार जब उसकी बारी आती है तो कुशल मदारी का जादू सिर चढ़कर बोलता है।
इधर भाजपा प्रतिपक्ष में तोड़फोड़ कर अपना कुनबा बढ़ाने में लगी है। बीच में ढेंचा आ गया। दूसरी तरफ कांग्रेस मजबूत होने की प्रक्रिया में है। समस्या डार्विन के योग्यतम की उत्तरजीविता के सिद्धांत को पूरी मान्यता न मिलने की है। पार्टी को मजबूत करने में ८० प्रतिशत की हिस्सेदारी निभाने वाले को पूरी तवज्जो दी गई है तो २० प्रतिशत के हिस्सेदार की उपेक्षा क्यों ? बात तो वाजिब है।
समझ में नहीं आता कि अवशेष नौ विधायकों सहित बाकी नेताओं और कार्यकर्ताओं का कांग्रेस के अंगने में क्या काम है ? भाजपा का लक्ष्य साठ पार है ! जनता ने मतदान के दिन गड़बड़ी की तो सरकार बनाने के लिए इस बार- उर्र-उर्र, फुर्र-फुर्र,,