
उत्तराखण्ड विधानसभा के चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं भविष्य के सबसे महत्वपूर्ण सवाल फिसलते जा रहे हैं। हाल तक अपना भू-कानून बहस के केन्द्र में आता लग रहा था। क्या आज उतनी सरगर्मी दिखाई दे रही है? सबसे पहले राजनीति के मदारी आए और मुफ्तखोरी का झुनझुना बजाकर असली सवालों को कुछ पीछे सरका गये। उत्तराखण्ड की राजनीति के बड़ों को और क्या चाहिए?
मुद्दों पर चर्चा होगी, सवाल पूछे जाएंगे तो जवाब भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को देने पड़ेंगे। राज्य बनने के बाद दोनों दल बारी-बारी से सत्ता सुख भोग रहे हैं। यह उत्तराखण्ड में ही संभव है कि वर्षों अथक संघर्ष और इसके लिए अपने भविष्य को दांव पर लगाने वाले हजारों युवाओं के मुकाबले राजनीति के चरागाह के नये-नये छुट्टे अधिक विश्वसनीय बताए जा रहे हैं। मजेदार बात यह भी है कि जो कांग्रेस को एक परिवार की पार्टी बताकर रात-दिन कोसते रहते हैं, वे सिर्फ एक आदमी की पार्टी के गुण गा रहे हैं। प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वायदा वास्तव में सौ टका बेईमान और ठग नेता ही कर सकता है, जो जनता को निपट मूर्ख समझता हो। कहां से आएंगी इतनी नौकरियां?
वह कौन-सा राजनीतिक दल और नेताओं का गिरोह है जो इतनी बिजली पैदा कर रहा है कि देश के एक छोर से दूसरे छोर तक अनंत काल तक मुफ्त बिजली देगा? जो लोग उत्तराखण्ड की सर्वांगीण उन्नति चाहते हैं उनको अपने-अपने स्तर पर प्रयास करने होंगे कि जनता को राजनीतिक ठगी के जाल-जंजाल से मुक्ति मिले। एक दिन ये प्रयास जरूर सफल होंगे।