
उत्तराखंड
राज्य गठन के 21 साल बाद भी यहां का सेब हिमाचल एप्पल के नाम से बाजार में बिक रहा है। इससे समझा जा सकता है कि आर्थिकी संवारने के मद्देनजर इस नकदी फसल को लेकर राज्य कितना गंभीर है। इस दिशा में सरकारी सुस्ती तो जिम्मेदार है ही, सेब उत्पादकों के मध्य से इसे लेकर कोई तस्वीर बदलने वाले नवोन्मेष की कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है। यद्यपि, अब सरकार ने इस चुनौती से पार पाने को ठोस कदम उठाने की ठानी है।
सेब उत्पादन में हिमाचल प्रदेश के मुकाबले उत्तराखंड बहुत पीछे है। हिमाचल में सेब का क्षेत्रफल 1.10 लाख हेक्टेयर है, जबकि उत्पादन होता है 7.77 लाख मीट्रिक टन। उत्तराखंड में 25980.55 हेक्टेयर में 64878 मीट्रिक टन पैदावार ही हो रही है। सेब उत्पादन में जम्मू-कश्मीर व हिमाचल के बाद उत्तराखंड तीसरे स्थान पर आता है, लेकिन यहां के सेब के सामने बना पहचान का संकट आज तक दूर नहीं हो पाया। वह भी तब जबकि, उत्तराखंड का सेब दोनों प्रमुख सेब उत्पादक राज्यों से किसी भी मामले में कम नहीं है। किसानों तक उत्तराखंड एप्पल के नाम वाली खाली पेटियां समय पर न पहुंचने की बात अक्सर सामने आती रही है। ऐसे में यहां के सेब उत्पादकों को हिमाचल एप्पल की खाली पेटियां खरीदने को विवश होना पड़ता है।
वातानुकूलित भंडार गृह (सीए स्टोर) जैसी सुविधाएं पर्वतीय क्षेत्र में ना के बराबर हैं।उत्तराखंड में मात्र उत्तरकाशी जिले में ही सरकारी सीए स्टोर है, जबकि ऊधमसिंहनगर व हरिद्वार में निजी क्षेत्र के। इसके साथ ही सेब उत्पादक क्षेत्रों में रोपवे का भी भारी अभाव है।