
उत्तराखंड
उत्तराखंड देवभूमि है, यहां कई नाग मंदिर है। जिनसे जुड़े रहस्य भी हैं। उत्तरकाशी जिले के गोरशाली गांव में वासुकी नाग का प्राचीन मंदिर हैं। जो कि करीब 250 सालों से भी पुराना है। मंदिर के पास बना कुंड आज भी लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है। मान्यता है कि इस कुंड में दूध की धारा डालने पर देवरूप में नाग स्वयं आते हैं। जिस पर स्थानीय लोग नाग पंचमी पर अपनी गाय का पहला दूध नाग देवता को चढाने आते हैं।
नाग पंचमी हिंदूओं का एक विशेष त्यौहार है। इस दिन हिंदू नाग देवताओं की पूजा करतें हैं। पुराणों में नाग के 9 स्वरूप माने गए हैं। अनन्त,वासुकि,शेषनाग,पद्मनाभ, कंबल,शंखपाल,धृतराष्ट्र,कालिया ,तक्षक हैं। नाग पंचमी पर भक्त नाग मंदिरों में पूजा पाठ कर दूध चढ़ाते हैं। देवभूमि उत्तराखंड में नागों के कई मंदिर हैं। जो कि सालों पुराने हैं। हर मंदिर की अपनी एक पौराणिक कथा और मान्यता है।
वासुकी नाग मंदिर करीब 250 साल पुराना है उत्तरकाशी जिले के गौरशाली गांव में हैं। जो कि करीब 250 साल पुराना है। ग्रामीणों का दावा है कि उनकी कई पीढ़ियां नाग मंदिर में पूजा करती आ रही हैं। इतना ही नहीं गांव में जब भी पहली बार गाय दूधारू होती है तो उसका पहला दूध नाग देवता को चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि इससे ग्रामीणों के पशुओं की रक्षा और उनकी प्रगति सालों से परंपरा के कारण होती आ रही है। इस गांव में नाग देवता वासुकी रूप में विराजमान हैं।
प्राचीन मंदिर के पास एक पानी का कुंड हैं। इस कुंड में नाग पंचमी पर लोग दूध की धारा डालते हैं, मान्यता है कि वहां पर नाग स्वयं दूध पीने आते हैं। पूर्वजों की इस परंपरा को अब नई पीढ़ी भी आगे बढ़ा रही है। हालांकि अब इस कुंड को जाल बनाकर सुरक्षा की दृष्टि से सुरक्षित कर दिया गया है। जिसे समय-समय पर स्थानीय लोग साफ-सफाई करते रहते हैं। लेकिन ये आज भी रहस्य है कि कुंड में नाग कहां से और कैसे आते हैं।नाग पंचमी पर प्राचीन वासुकी नाग मंदिर में विशेष पूजा अर्चना होती है। ग्रामीण दूध, दही, मट्टा, घी एकत्र करते हैं। जिसके बाद मंदिर में ही खीर बनाई जाती है। इस दौरान वासुकी नाग डोली स्वरूप में भी पूजा के दौरान मौजूद रहते हैं। बाद में विशेष पूजा कर दूध की खीर प्रसाद स्वरूप चढाई जाती है और सभी लोग नाग के प्रसाद को ग्रहण करते हैं। गांव में ही भगवान हूणेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है। यहां पर भी नाग पंचमी पर खीर बनाकर पहले भगवान को प्रसाद चढ़ाया जाता है, इसके बाद ग्रामीण प्रसाद ग्रहण करते हैं।
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