अद्भुत है ये होली: यहां रंग-गुलाल से नहीं दूध-मक्खन से मनाते हैं उत्सव

रंगों और फूलों से होली के बारे में आपने जरूर सुना होगा। लेकिन उत्तराखंड में एक ऐसी जगह भी है, जहां पर सदियों से दूध-मक्खन की अनूठी होली खेली जाती है। 

उत्तरकाशी जिले के दयारा बुग्याल में आयोजित बटर फेस्टिवल के दौरान ग्रामीणों ने दो सौ किलो मट्ठा और 50 किलो मक्खन का इस्तेमाल कर जमकर होली खेली। जिसमें रैथल, भटवाड़ी, नटीण, गौरसाली  के ग्रामीणों संग  दिल्ली, आगरा, देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश सहित कई  विदेशी सैलानियों के कुल 500 पयर्टकों ने प्रतिभाग किया।इस मौके पर स्थानीय ग्रामीण महिलायें व ग्रामीण अपने पारंपरिक गणवेश में दयारा पहुंचे और पारंपरिक रासौ नृत्य कर समा बांधा। 
उत्तरकाशी में भाद्रपद की संक्राति के अवसर पर बुधवार को दयारा बुग्याल में पारंपरिक अढूड़ी उत्सव (बटर फेस्टिवल) का आयोजन किया गया।कोरोना काल के दो वर्ष बाद आयोजित इस आयोजन के लिए ग्रामीणों ने इसे इस वर्ष भव्य रूप में मनाया। सभी ग्रामीण व महिलायें पारंपरिक वेश भूषा के साथ  दयारा बुग्याल पहुंचे। जहां सभी ने स्थानीय देवी देवताओं की पूजा अर्चना की और मक्खन मट्ठा की होली खेली। इस दौरान महिलाओं एवं ग्रामीणों ने वाद्यय यंत्रो की थाप पर पारंपरिक रासौ नृत्य किया और दर्शकों का समा बांधा।  समिति के अध्यक्ष मनोज राणा ने बतया कि समुद्रतल से 11 हजार फीट की उंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल में रैथल के ग्रामीण गर्मियों की शुरूआत में ही अपने मवेशियों के साथ छानियों में चले जाते हैं।

सावन महीने के बीतने के साथ ही उंचाई वाले इलाकों में ठंड की दस्तक शुरू हो जाती है तो ग्रामीण भी अगस्त महीने के दूसरे पखवाड़े में मवेशियों संग गांव लौटना शुरू कर देते हैं। इतनी उंचाई पर मवेशियों की रक्षा करने और दुग्ध उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि होने पर ग्रामीण लौटने से पहले भाद्रपद महीने की संक्राति को यहां दूध मक्खन मट्ठा की होली खेलकर लोक देवताओं की पूजा करते हैं

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