
Uksssc पेपर से लेकर कानून की धात्री (विधानसभा) तक मर्यादाओं के Ieak होने की कहानियां काश उत्तराखण्ड में अपवाद होतीं। तब इन घटनाओं को लेकर चोर-2 के शोर के सार्थक परिणाम की उम्मीद की जा सकती थी। लेकिन ये प्रवृत्तियां तो हमें विरासत में मिली हैं।
सिर्फ पैसों और उनके लेन- देन से फायदे खरीदना, बेचना भ्रष्टाचार नहीं है।कुनबापरस्ती और तरह-2 के भेदभावपूर्ण हथकण्डे पहले से प्रभावी रहे हैं। बेशक तब अवसरों की संख्या सीमित थी, अनुपात यही रहता था।
अब चुनावी हथकण्डों की तुलना कीजिए।
मतदान के समय अपने-2 व्यवहार पर एक नजर दौड़ाइए। उम्मीदें बनती हैं? कि, बबूल के बीज बोकर आम प्राप्त होने चाहिए।
और जबतक मतदान के गुणात्मक महत्व की प्रतिष्ठा कायम नहीं होती, तब तक मानलें कि,,,,,,लीक-2 तीनों चलें- नेता, अफसर, व्यवसायी के बीच सपूत।