
आज भी वो दिन याद कर दिल कांप जाता है जब एक सितंबर 1994 को खटीमा में गोली कांड को अंजाम दिया गया था। खटीमा गोली कांड के विरोध में जब दो सितंबर 1994 को मसूरी में विरोध-प्रदर्शन किया जा रहा था तो यहां भी निहत्थों पर गोलियां चला दी गईं।इस आंदोलन के गवाह रहे यूकेडी के निवर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष और संयुक्त संघर्ष मोर्चा के प्रदेश सचिव रहे सुरेंद्र कुकरेती बताते हैं कि उनके नेतृत्व में पृथक राज्य गठन के पक्ष में 10 लाख शपथ पत्र भरवाए गए। तब राष्ट्रीय पार्टियों ने चुनाव न लड़ने का ऐलान किया, लेकिन चुनाव आते-आते राष्ट्रीय पार्टियों ने यूकेडी से धोखा कर दिया और चुनाव में उतर गईं।राज्य आंदोलन के दौरान 31 दिन तक जेल में रहे सुरेंद्र कुकरेती बताते हैं कि खटीमा गोलीकांड के बाद मसूरी के झूला घर के सामने यह विरोध स्वाभाविक था। वे भी विरोध-प्रदर्शन का हिस्सा थे। दूर-दूर तक उन्हें किसी अनहोनी की आशंका नहीं थी। तभी अचानक पुलिस ने पहले लाठियां बरसाईं, फिर बिना चेतावनी के गोली चला दी। कोई हवाई फायरिंग और रबर की गोलियां नहीं दागीं गईं।उन्होंने बताया कि महिलाएं आगे आई तो उन्हें भी गोली मार दी गई, जिसमें बेलमति चौहान और हंसा धनैई शहीद हो गईं। तब वहां मौजूद डीएसपी रहे उमाकांत त्रिपाठी ने गोली चलाए जाने का विरोध किया तो उन्हें भी गोली मार दी गई, जिन्हें बाद में शहीद का दर्जा मिला। फिर आंदोलन ने तेजी पकड़ ली और नौ नवंबर 2000 को 42 शहादत के बाद पृथक राज्य की प्राप्ति हुई। आज तक खटीमा और मसूरी गोली कांड के दोषियों को सजा नहीं मिली है।सुरेंद्र कुकरेती बताते हैं कि वर्ष 1996 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में देहरादून के ऐतिहासिक परेड ग्राउंड में रैली थी। आंदोलनकारी इसके विरोध का ऐलान कर चुके थे। मंच के आसपास सुरक्षा कड़ी थी। तब वे भेष बदल कर मंच के करीब पहुंचे। उन्होंने बताया कि उनकी मंशा मंच पर जाकर विरोध जताने की थी, लेकिन यह संभव नहीं हो पा रहा था। वह बचते बचाते किसी तरह मंच के नीचे पहुंचे और लाउड स्पीकरों की तारें खींच दीं। प्रधानमंत्री अटल बिहारी का भाषण बीच में ही रुक गया, जिससे खलबली मच गई। फिर क्या था रैपिड एक्सन फोर्स ने कुकरेती पर लाठियां बरसा दीं। वे बुरी तरह जख्मी हो गए।कान और आंखों में गंभीर चोटें आई। करीब एक साल तक उन्हें दिखाई नहीं दिया।