अंकिता, बेटी होने के दर्द के साथ चिरनिंद्रा में लीन-विक्रम बिष्ट

अंकिता, बेटी होने के दर्द के साथ चिरनिंद्रा में लीन है। कानून अपना काम करेगा और कफनखसौट राजनीति अपना।
देवभूमि राज्य की स्थापना के बाद क्या-2 शर्मनाक काण्ड हुए जनता जनार्दन का कर्त्तव्य है कि भूल जाए। दोनों तरफ तड़प रहती है पहले मैं…
आज की घटना उस नापाक श्रृंखला से हटकर है और इसलिए हृदयविदारक है। हर आम और खास के लिए जिसके लिए यह दुखद और उत्तराखण्ड राज्य के संदर्भ में निराशाजनक है एक बहुत बड़ी चुनौती है।
उत्तराखण्ड की हालिया घटनाओं को लेकर सीबीआई जांच की मांग के संदर्भ में पूर्व में पत्रकार उमेश डोभाल की गुमशुदगी को लेकर कुछ तथ्यों पर ध्यान आकर्षित कराने का प्रयास किया है। तब सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया था। अब आरोपियों की गिरफ्तारी भी हो गई है, इसलिए ऐसी कोई गुंजाइश फिलहाल (!) नहीं है।
अखबार की यह कतरन 1988 की है, जो इसलिए साझी की जा रही है कि किस तरह उमेश डोभाल के लिए उस आंदोलन को दलगत (छद्म) राजनीति ने भटका ही दिया था।
आज कहीं बड़े आंदोलन की जरूरत है। अंकिता के लिए कोई श्रद्धांजलि हो सकती है तो यही कि हम उन जहरीली जड़ों तक पहुंचें,,

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