
नई टिहरी
कुछ देर पहले हनुमान चौक पर एक युवक ने पास आकर पूछा, अंकल यहां देखने के लिए कुछ और जगह है ? क्या जवाब देता, अचानक याद आया पिकनिक स्पॉट है। उसने फिर सवाल किया, बाजार सिर्फ इतना ही है ? हां, बौराड़ी भी है। सोचा तो उन्होंने होगा, नई टिहरी, यानी कुछ खास दर्शनीय।
जाहिर है भारत का ‘ मिनी स्विट्जरलैंड’ नहीं सुना होगा। उस सपने के व्यापारी अपने-2 स्विट्जरलैंड में मस्त हैं। पुनर्वास का जिम्मा टीएचडीसी को मिला तो उसने यहां चौराहों पर सीमेंट वगैरह के पुतले थरप दिए। लोगों को माडर्न आर्ट समझाने के लिए।
लोग समझ गये। इसलिए उनकी जगहें हनुमान जी, शिवजी, गणेश जी और सांई जी ने ले ली है। कलयुगी कृष्ण जी ने भी, फिलहाल वह वहीं हैं जहां होना चाहिये।
नव प्रभात तिवाड़ी सरकार में शहरी विकास मंत्री थे। नव निर्वाचित टिहरी नगर पालिका बोर्ड को शपथ दिलाने आये थे। मुझे कार्यक्रम संचालन करने का जिम्मा। इसका उपयोग करते हुए मैंने सुझाया, टिहरी शहर की शानदार विरासत है। उसे संजोए रखने के लिए यहां जलमग्न शहर की भव्य प्रतिकृति बनाई जानी चाहिए। उन्होंने अपने भाषण में कहा यह बहुत बढ़िया सुझाव है। प्रस्ताव आना चाहिए। इतना जानता हूं कि वह ढिंढ़ोरा नहीं पीटते हैं।
यदि उस सुझाव पर काम होता तो किसी को यह सवाल पूछने की जरूरत क्यों होती कि यहां देखने के लिए कोई जगह है। वह तो बड़़ी बात है। नगर के प्रवेश द्वार पर तीन साल पहले नगर पालिका परिषद ने इन्द्रमणि बडोनी स्मृति पार्क बनाने का निर्णय लिया था। तत्कालीन जिला जज, जिलाधिकारी , पालिका अध्यक्ष सीमा कृषाली और बडोनी स्मृति मंच के अध्यक्ष लोकानंद डंगवाल सहित कई लोगों ने वहां वृक्षारोपण कर इसकी शुरुआत की थी। उस पर स्थानीय राजनीति शुरू हो गई। नतीजा !
नई टिहरी में लोग आयें तो क्यों? यह बड़ा सवाल है। भाई शीशराम थपलियाल जी सहित कुछ लोगों से बात हुई हैं। कुछ लोगों को फुर्सत नहीं है।
प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखण्ड में बाईस नये शहरों को बसाने की घोषणा की है। पलायन रोकना सबसे बड़ा मकसद है। इसे समझने के लिए नई टिहरी से बेहतर कोई उदाहरण नहीं हो सकता है। सार्थक चर्चा हो सकती है?