
टिहरी
पेपर लीक हुए हैं। बाकी क्या-क्या लीक हो रहा है , सभी चालाक लोगों की अपनी- 2 लीक है लुकाछुपी के साथ। शामत बेचारे बेजान पुतलों की है।
लोकतंत्र मजबूत और टिकाऊ है, सजग और समर्थ विपक्ष इसकी गारण्टी है। बेजान पुतलों के सहारे खुद के होने का अहसास दिलाने की कोशिशों के पराक्रम से किसी को क्या फर्क पड़ता है। पुतलों को आग लगने से फर्क पड़ता है क्या ?
उत्तराखण्ड क्रांति दल के 9 नवंबर 1986 के नैनीताल, मार्च 87 के पौड़ी प्रदर्शन और 9 अगस्त 87 के ऐतिहासिक उत्तराखण्ड बंद के बीच हमने कभी पुतलों का सहारा नहीं लिया। राज्य आंदोलन के एक दशक के दौरान सिर्फ एक बार पुतला दहन में हिस्सा लिया था। तब राज्यपाल शासन था। टिहरी बांध प्रभावित प्रतापनगर क्षेत्र के लोगों का प्रदर्शन था। उसी दिन उक्रांद की ओर से तिवेन्द्र पंवार जी के नेतृत्व में पुतला दहन कार्यक्रम हुआ था। यह शार्ट कट क्यों लिया गया, पूछने का भी समय नहीं था। प्रताप सिंह जी डीएम थे, लोक निर्माण विभाग विश्राम गृह में उन्हें ज्ञापन सौंप दिया।
मशालें प्रतिरोध की सबसे सशक्त प्रतीक रही हैं। ये राहें दिखाती हैं। उत्तराखण्ड जन परिषद के अग्रवाल धर्मशाला से राजपुर रोड स्थित डीएम आवास तक मशाल जुलूस और नारों ने द्रोणनगरी को चौंका दिया था। टिहरी में बस अड्डे से मशालें लेकर चले और जिला परिषद के पास ,,, काफी देर से पहुंचे पुलिस के लोगों ने कहा भाई लोगों तुम्हारा जुलूस तो ठीक है, लेकिन इतना मत दौड़ो, कि,, दम फूल जाए।
दम लगाकर सार्थक दौड़ ईमानदारी से ही संभव है। राजनीतिक दल हैं तो जनता की अदालत में जाने का साहस जुटाएं। वरना पुतले तो पुतले होते हैं, बेजान हैं और खुद
भी ऐसे ही हैं तो तालियां बजाकर ,,