
जोत सिंह बिष्ट
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा लोकसभा के पटल पर वर्ष 2021 -2022 के लिए जो बजट पेश किया गया, वह देश के किसानों के लिए, बेरोजगार नौजवानों के लिए, गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए पूरी तरह निराशाजनक बजट है। यह बजट उत्तराखंड के लोगों को हताश करने वाला बजट है। जब चीन भारत की जमीन पर तंबू गाड़ कर बैठ है तब इस बजट में रक्षा मद में कोई बढ़ोतरी न करना, जब देश का किसान 70 दिन से दिल्ली की सीमाओं पर डटा हुआ है तब कृषि क्षेत्र के बजट में 6ः कटौती करने का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है।
बजट में आम जरूरत के समान महंगे तथा सोने और चांदी को सस्ता करने का प्रावधान किया गया है। लेकिन गरीब और गृहणियों को कोई राहत नहीं दी गई है। रसोई गैस को महंगी करके, उसकी सब्सिडी में कटौती करके तथा पेट्रोल और डीजल पर सैस के रूप में टैक्स लगाकर के इस बजट के माध्यम से गरीबों को महंगाई की मार से जूझने के लिए छोड़ दिया गया है।बजट में आयकर के स्लैब में कोई राहत नहीं देकर गरीब और मध्यम वर्ग के साथ धोखा किया गया है। इस बजट के माध्यम से देश की आजादी से लेकर अब तक कांग्रेस की सरकारों द्वारा जो सार्वजनिक संस्थान और प्रतिष्ठान खड़े किए गए थे, देश में जो ढांचागत विकास किया गया है, जैसे हवाई अड्डे, रेलवे लाइन, बंदरगाह या अन्य सार्वजनिक उपक्रम उन सब को बेचने का रास्ता खोला गया है। उनको बेचने के बाद सरकार को जो पैसा मिलेगा उसका उपयोग किस काम में किया जाएगा इसका उल्लेख बजट में नहीं है। यह देश की जनता के साथ धोखा है। इससे पहले की भारत सरकारों द्वारा रिजर्व बैंक में आपातकाल के लिए जमा की गई पूंजी और सोने को भी मोदी सरकार न बेचकर देश का खजाना खाली किया है। कोरोना काल में जब देश में सब कुछ ठप हो गया था, तब मनरेगा से ही ग्रामीण क्षेत्र में गरीबों के चूल्हे जलते रहे, गरीब के बच्चे भूखे न रहें इस बात का सहारा मनरेगा योजना ने दिया। उसी गरीब परस्त मनरेगा योजना के बजट में इस बार 38500 करोड़ की कटौती की गई। यह कटौती गरीब के पेट पर चोट है। देवभूमि उत्तराखंड के लोगों को निर्मला सीतारमण बजट के पिटारे से फिर से निराशा हाथ लगी है। लोग उम्मीद कर रहे थे कि 2022 के चुनाव से पहले केंद्रीय बजट उत्तराखंड को कुछ नई सौगात देगा। उत्तराखंड की जनता इंतजार कर रही थी कि इस बार आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए केंद्र से उत्तराखंड को राजधानी निर्माण के लिए पैकेज, ग्रीन बोनस, च्डळैल् के 250 के मानक में 150 की आबादी के मानक में छूट, स्वरोजगार योजना मद में 4 गुना बढ़ोतरी, च्ड आवास योजना के मानक को बढ़ाकर 2 लाख प्रति यूनिट आदि महत्वपूर्ण फैसलों का, लेकिन ऐसा कोई एक काम भी नहीं हुआ। उत्तराखंड को न तो राजधानी बनाने के लिए एक कौड़ी मिली ना ग्रीन बोनस के रूप में सरकार को नई सौगात मिली। पहले से चल रही बड़ी सड़क परियोजनाओं के अलावा इन 4 सालों में राज्य को कुछ भी नहीं मिला। राजधानी निर्माण के लिए पैसा नहीं, कोई नई रेलवे लाईन नहीं, ग्रीन बोनस नहीं, ना कोई नया मेडिकल कॉलेज, ना कोई नया इंजीनियरिंग कॉलेज, ना कोई ऐसा बड़ा उद्योग जिससे बेरोजगार नौजवानों को रोजगार का रास्ता खुल सके। बजट में कर्मचारियों के हितों की अनदेखी की गई है। पुरानी पेंशन योजना की बहाली की आस लगाए कर्मचारियों को बजट से निराश होने पड़ा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि यह बजट गरीब और मध्यम वर्ग की कमर तोड़ने वाला तथा अमीरों को और अधिक अमीर करने वाला बजट है। देश की गरीब और मध्यमवर्गीय जनता के साथ-साथ उत्तराखंड को इस बजट से निराशा और हताशा हुई है। बंगाल चुनाव को देखते हुए भारत सरकार ने अपना पूरा बजट भारत की जनता को समर्पित करने के बजाय पश्चिम बंगाल के चुनाव को समर्पित किया है। देवभूमि उत्तराखंड की जनता को भारत सरकार द्वारा केंद्रीय बजट में की गई उत्तराखंड की उपेक्षा को भूलना नहीं चाहिए और समय पर इसका सही जवाब देने के लिए अभी से मन से तैयार होना चाहिए।