
विक्रम बिष्ट
शामशाह की कुलांई ,,,,,,
अकबर-बीरबल के चुटकुले तो बहुत सुने पढ़े हैं। गढ़वाल का एक जिदी राजा स्वयं चुटकुले से कम नहीं था।
पंवार वंश का पैंतालीसवां शासक था शामशाह। वह बेहद ज़िद्दी स्वभाव का था। जो कह दिया उसे हर हाल में मनवा लेता था।
कहते हैं कि एक बार वह राजधानी श्रीनगर से कहीं बाहर जा रहा था। बीच रास्ते में उसने काफिला रुकवा दिया। अपने अंगरक्षक से पूछा बताओ वह कुलांई (चीड़) का पेड़ सीधा है या टेढ़ा। अंगरक्षक ने जवाब दिया सीधा है, महाराज। राजा ने उसे फटकार लगाई – टेढ़ा है। एक-एक कर सैनिकों को बुला कर पूछा।
आखिर में मंत्री की बारी आई। चतुर मंत्री ने जवाब दिया , महाराज शामशाह की कुलांई, सामी त सामी बांगी त बांगी (सीधी तो सीधी टेढ़ी तो टेढ़ी ! ) । तब जाकर काफिला आगे बढ़ा ।
राजा को गर्मियों की शाम अलकनंदा में नौका विहार का शौक था। एक शाम नौका उलट गई और राजा सेवकों के साथ डूब कर मर गया।
तब राजतंत्र था। राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था। गढ़वाल का राजा तो साक्षात भगवान (बोलांदा बद्रीनाथ) कहलाता था।
आज की राजनीति में भी यही चल रहा है। किसान आंदोलन हो या रसातल में धंसती अर्थ व्यवस्था, ग्राम पंचायत से लेकर पंत प्रधान तक,
अपनी हट।।
कभी कांग्रेस के लिए कहा जाता था खाता न बही सीता राम केसरी जो कहे वही सही। आज वाले कहां अलग हैं!