बहरहाल- मुख्यमंत्री धामी की घोषणा के अनुसार अब उत्तराखंड आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण की प्रक्रिया पुनः शुरू होगी।

विक्रम बिष्ट ।

आंदोलनकारी चिन्हीकरण परियोजना( !)कांग्रेस राज में शुरू की गई थी। मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी थे। जो उत्तराखंड राज्य निर्माण के विरोधी थे।
कांग्रेस के कई नेताओं ने उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति में घुस कर तीन निशाने साधे। जिनकी राजनीतिक जमीन आंदोलन से छिन रही थी वे उसे बचाने की कोशिश में थे। जिनकी कोई राजनीतिक जमीन नहीं थी वे समिति के जरिए अपने लिए ठिये तलाश रहे थे। दोनों वर्गों की संयुक्त कोशिश थी कि उत्तराखण्ड क्रांति दल को लोकसभा चुनाव से बाहर रखा जाए। समय साक्षी है कि वे सफल रहे और उक्रांद हाशिए पर आ गया। बहरहाल, यह लम्बी कहानी है।
चिन्हीकरण के मानक
भी अटपटे हैं। उत्तराखण्ड आंदोलन मूल स्वरूप में लोकतांत्रिक था। धरना, प्रर्दशन, सभाएं। कठोर कार्रवाई के तौर पर बंद चक्का जाम और गिरफ्तारियां। इसके साथ जेल भरो आंदोलन। इसकी स्पष्ट जानकारी स्थानीय अभिसूचना इकाई को खासतौर पर नेताओं के बारे में होनी चाहिए।
अन्यथा आंदोलन के लिए कानून में कौन सी धाराएं है ? वाजिब संशोधनों और ईमानदार प्रक्रिया के बिना यह पेंशन प्रमाण पत्रों की सरकारी दुकान बनकर रह जाएगी।

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