
टिहरी
टिहरी बांध परियोजना का निर्माण करने वाली टीएचडीसी इंडिया ने अपने 36वें साल में प्रवेश किया है। सन् 1986 में तब के सोवियत संघ के राष्ट्रपति गोर्वाचेव की भारत यात्रा के दौरान दो हजार करोड़ रुपयों के समझौते से इसकी सैद्धांतिक नींव रखी गई थी। तब तक टिहरी बांध यूपी की परियोजना थी और धनाभाव के कारण हिचकोले खा रही थी।
जुलाई 1988 में केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार का संयुक्त उपक्रम टीएचडीसी का गठन किया गया। इसमें दोनों सरकारों की क्रमशः 75:25 फीसदी हिस्सेदारी तय की गई थी और आज भी है। हमारे माननीय अभी तक रायल्टी पर अटके हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उत्तराखण्ड की वाजिब हिस्सेदारी की वकालत करने वाले पहले नेता हैं ।
तमाम उतार चढ़ाव के बीच टीएचडीसी अपने महत्वाकांक्षी मुकाम तक पहुंच गई है।अब अपार संभावनाओं के द्वार खुल गए हैं। बेशक टीएचडीसी से टिहरी का नाम लुप्त हो गया है, लेकिन क्या सचमुच !
अनगिनत कहानियां हैं, परदे के आगे, पीछे ,,
दो महीने अढ़ाई कोस- मुहावरे के शब्द ही बदले हैं। केंद्र की एचडीदेवगोड़ा सरकार में तेलुगू देशम के डॉ. वेणुगोपालाचारी ऊर्जा मंत्री थे। टिहरी में परियोजना के तत्कालीन महाप्रबंधक के प्रति लोगों में खासा आक्रोश था। बीएचईएल से यहां आये उन महाशय की मानवीय संवेदनशीलता का नमूना- हमने उन(विस्थापितों) को मुआवजा दे दिया है, वे कहीं भी चाहे गुफाओं में रहें।
ऊर्जा मंत्री भी उन्हें बदलने के लिए राजी थे। हम प्रधानमंत्री जी को भी चिठ्ठी दे आये थे। उसी दिन टिहरी से एक प्रतिनिधिमंडल तिवाड़ी जी के साथ पीएम जी मिला था। यह सूचना मिलते ही हम समझ गए जीएम की कुर्सी फिलहाल हिलने वाली नहीं है।
एक दिन ऊर्जा मंत्री के कार्यालय में तत्कालीन सचिव मौजूद थे। बात-बात में पूर्व छात्र नेता जोत सिंह नेगी ने सचिव साहब को कह दिया जीएम को आपका संरक्षण है। साहब का तिलमिलाना स्वाभाविक था। कुर्सी से उठकर बोले ऐसे तो कोई भी…। हमें नहीं चाहिए ले जाइए अपनी टीएचडीसी, दो महीनों में अपनी यूपी। खैर मंत्री जी ने बात संभाली।
हमें लगा टीएचडीसी का मुख्यालय कम से कम ऋषिकेश शिफ्ट हो सकता है। दिन, सप्ताह, महीना गुजर गया।,, फिर पता चला कि मुख्यालय नोएडा तो पहुंच ही गया है।