
टिहरी
लगभग नौ साल पहले जब देश को असली आजादी मिली थी। पद्मश्री के श्रीमुख से बताया गया था – एकदम खरी आजादी। 1947 की आजादी में कांग्रेसी मिलावट थी।
इस असली आजादी के आने से पहले सरकार कोयले की दलाली में अपना मुंह काला करवा चुकी थी। धब्बे तो देश की चादर पर पहले से थे, नेहरू के कारण, भाखड़ा नांगल बांध भी ! उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए राजीव गांधी सैम पित्रोदा को भारत लाए थे। इसे इटली की देखरेख में रेनकोट में नहाने वाले सरदार जी ने आगे बढ़ाया था। और , रही-सही कसर टूजी, थ्री जी, इन जी और उन जी ने पूरी कर दी।
ये लोग पूरे देश को ही बेच डालते तभी महाराष्ट्र से एक संत दिल्ली पहुंचे। दरअसल असली आजादी की लड़ाई सन् सैंतालीस से पहले महाराष्ट्र में ही कहीं अंग्रेजों की संगत में चल रही थी। इधर नून तेल वाले बाबाजी ने अपनी दिव्य दृष्टि से पता लगा लिया था कि दुष्टों ने चार लाख करोड़ का कालाधन विदेशी बैंकों में जमा करवा रखा है। उसे वापस लाकर प्रत्येक भारतीय की झोली में 15-15 लाख रुपये डाले जा सकते हैं। जनता पर पड़ रही महंगाई की मार शर्तिया रोकी जाएगी। संतों ने दिल्ली में घोर तपस्या शुरू कर दी। सिलेंडर नचवाया गया।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवताओं ने मतदाताओं की आत्माओं में प्रवेश किया । कमलदल खिला, झाड़ू भी महका। घूरे के दिन फिरे। गांधी, नेहरू ने जो कबाड़ा कर छोड़ा था उसकी सफाई शुरू की गई। राष्ट्र का गौरव दिन दूनी रात चौगुनी उछाल मारने लगा । दुनिया के तमाम देश भारत की चमक के दीवाने होने लगे, बल्कि गले मिलने-पड़ने को मचलने लगे। हमारा पुराना दुश्मन चीन संग-संग झूला झूलने को बेताब हो गया। वह तो इतना मुरीद हो गया कि चोरी- छिपे इस तरफ ताक- झांक करने की कोशिशें कर रहा है। घुसा नहीं है। दिल्ली की दहाड़ के सामने किसी में इतनी हिम्मत नहीं हो सकती है।
देश का यह गौरव नेहरू, गांधी के वंशजों और टुकड़े- टुकड़े गैंग को पच नहीं रहा है। उनकी करतूतों की वजह से कालाधन अटक गया है। सिर्फ अटका ही नहीं है। वह.बढ़कर बीस लाख करोड़ की गारंटी बन गया है। सत्तर हजार करोड़ तो महाराष्ट्र की एनसीपी ही गटक गई है। हिन्दू हृदय सम्राटों की धरती पर ऐसा घोर अपमान ! नये सिरे से वहीं से महा सफाई अभियान शुरू। टुकड़े-2 गैंग के टुकड़े इधर उधर,,, नहीं उधर से इधर।
वैसे चाचा- भतीजे की जुगलबंदी भी कम रोचक नहीं है। कपड़ों और नीयत की उचित समय पर धुलाई करते रहने से कर्मों का फल मनवांछित रहता है। बाबाजी भी तो…