भौंकुछ -विक्रम बिष्ट : पन्द्रह साल बाद उत्तराखंण्ड-दो।


सरकारी दफ्तर
अफसर- आपके पास अनुभव और पूंजी है। उत्तराखंड को अति आत्मनिर्भर बनाने के लिए जरूरी है। लेकिन,,
युवक- लेकिन क्या सर?
अफसर- आपको अपने कारोबार के लिए जमीन चाहिए। सरकार के पास जो जमीन थी, बंट चुकी है। थोड़ी होगी कहीं तो सिर्फ स्थाई निवासियों को ही मिल सकती है।
युवक- लेकिन मैं यहां का मूल निवासी हूं। हमारा परिवार
आम गरीब परिवारों में से था। रोजगार की तलाश में पिताजी को मुम्बई जाना पड़ा।
फिर उन्होंने हमें भी वहीं बुला लिया। दिन-रात मेहनत कर हमें पढाया। हमेशा कहते रहे पढ़ सीख कर काबिल बन जाओगे तो वापस उत्तराखण्ड लौट जाना। वहां तुम्हारे लाखों भाई, बहिनें हैं, जिनके सपने तरुणाई की शुरुआत में ही मुरझा रहे हैं। वहां लौटकर नई शुरुआत करना। जितनों को हो सके साथ लेना। जहां तक हो सके सही राह दिखाने की कोशिशें करना। उनकी,,
अफसर (थोड़ा भावुक होकर)- तुम्हारे पिताजी और तुम्हारी भावनाओं की कद्र करता हूं। लेकिन मजबूर हूं। तुम्हारी शिक्षा मुम्बई में हुई। यानी तुम बीस बाइस साल मुंबई में रहे। स्थाई निवासी होने के लिए उत्तराखंड में कम से कम पन्द्रह साल रहना जरूरी है। फिर चाहे मूल निवासी ही क्यों न हों।
युवक- लेकिन सर,,,
अफसर- सारी बेटा!

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