भौंकुछ -विक्रम बिष्ट

भौंकुछ सुना है डॉ. मनमोहन सिंह आजकल बहुत खुश हैं। सुना ही है, सुनाया किसने है किसे मालूम ! वह बोलते ही कितना हैं। उनका तो नामकरण ही शायद किसी…

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भौंकुछ :  ईवीएम बेचारी,,, – विक्रम विष्ट 

  भौंकुछ : ईवीएम बेचारी,,, गरीब की जोरू गांव की भौजाई, यह मुहावरा था या मजाक, चलती तब भी दबंगों की थी और आज भी । मशीन आदमी ही बनाता…

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भौंकुछ- विक्रम बिष्ट :हमारे मंत्री कम खाते हैं

मंत्रियों का सरकारी प्रोटोकॉल होता है। यह रुतबा है या अहंकार प्रदर्शन या लोकतंत्र का मजाक!
पांच साल में कुछ दिनों के लिए जनार्दन बनने वाली जनता द्वारा चुने गए हों या कड़ी मेहनत से पढा़ई- लिखाई कर बने हुक्मरान, भोजन तो सभी के लिए अनिवार्य है।
लाव लश्कर भी अनिवार्य. है। यह सनातन परंपरा है। सामंती युग से। रावण का प्रोटोकॉल न भूतो न भविष्यति। दस सिर अर्थात दस मुंह! पेट के बारे में ऋषि वाल्मीकि से लेकर संत तुलसीदास तक रामायण खामोश। केन्द्र में कई महान मंत्रियों के साथ कुछ त्रिकालदर्शी भी हैं, डार्विन जीवित होते तो खम ठोककर चुनौती देते।
बात तब की है जब हम उत्तर प्रदेश में थे। मंत्री जी दौरे पर आए थे। खबर तो थी ही। खबर के भीतर भी खबर होती है।
बताते हैं कि मंत्री जी की आवाभगत में मात्र तीस मुर्गे, मुर्गियों की बलि दी गई। जाहिर है कि यह खबर नहीं थी। बाद में पता चला कि मंत्री जी पूरी तौर पर शाकाहारी हैं।
यह सामान्य सा प्रश्न था कि एक शाकाहारी मंत्री जी का दौरा तीस मुर्गे-मुर्गियों से तृप्त होता है तो मांसाहारी मंत्री जी का दौरा?
अब छोटा राज्य है तो खर्च कम ही होता है। मंत्री जी भले दो रोटी सब्जी ही लें। बाकी का भी तो बनता है। मंत्री जी के साथ सरकारी भोजन करने से रुतबा बनता है खासकर सरकारी अमले के सामने।
कई लोग हैं जो मेज ठोक कर अधिकारियों पर अहसान जताते हैं कि उत्तराखंड राज्य हमने बनाया है, हमारी बदौलत सामने की कुर्सी पर हो। बात भी सही है बेशक तब आंदोलनकारियों की चुगली ही करते रहे हों, योगदान तो है ही!
तिवारी सरकार ने सुदि-मुदि उत्तराखंड आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण का निर्णय तो नहीं लिया! और जिम्मेदारी भी,,,
दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के नाम सरकारी बंगला था उनके सुपुत्र अजित सिंह वहां रहते थे। एक दिन हम भी घूमते फिरते उधर चले गए। वहीं से एक शख्स आंदोलनकारियों का उद्धार करने हेतु अवतरित किये गये। उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के स्वयंभू समन्वयक!

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भौंकुछ -विक्रम बिष्ट :पन्द्रह साल बाद उत्तराखण्ड- तीन

विधानसभा में जोरदार बहस हो रही है। किस बात पर हो रही है, किसी को कुछ पता नहीं है। उनको भी नहीं जो बहसा रहे हैं। दर्शक दीर्घा में बैठे दो युवक भौंचक्के से? अरे, हम तो विधानसभा की बैठक देखने- सुनने आये थे। शायद गलती से किसी हाट- बाजार पहुंच गए हैं।
तभी नीचे कोई जोर से चिल्लाया- बंद करो ये बकवास। इसलिए हमारा उत्तराखण्ड बर्बाद हो रहा है। उत्तराखंड का अपमान बंद करो! यह अकेली आवाज थी जो सभी ने सुनी। दर्शक दीर्घा में बैठे युवकों ने समझी भी। यह उनकी अपने दिल की आवाज थी। इस आवाज में पहाड़ की पीड़ा थी और चुनौती भी।
सत्ता पक्ष की पहली कतार की पहली कुर्सी पर बैठा दबंग नेता उठा और चिल्लाया, खामोश!
तुम्हारा उत्तराखंण्ड मेरे ठेंगे पर। सभा समाप्त। नित्यानंद- नित्यानंद। नारायण-नारायण।
कुछ दिन बाद, विधानसभा चुनाव से पहले।
दिल्ली में पार्टी आलाकमान के प्रभारी का दफ्तर। उत्तराखंड के राजनीतिक भविष्य की तख्ती टिकट खिड़की पर टंगी है। लिखा है-
मिशन २०३७। मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत, अल्मोड़ा के टिकटार्थी अपना समय बर्बाद न करें।
नैनीताल और देहरादून के लिए आंशिक छूट है।
पांच साल बाद। देहरादून और नैनीताल की भी नो एंट्री।

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भौंकुछ -विक्रम बिष्ट : पन्द्रह साल बाद उत्तराखंण्ड-दो।

सरकारी दफ्तर
अफसर- आपके पास अनुभव और पूंजी है। उत्तराखंड को अति आत्मनिर्भर बनाने के लिए जरूरी है। लेकिन,,
युवक- लेकिन क्या सर?
अफसर- आपको अपने कारोबार के लिए जमीन चाहिए। सरकार के पास जो जमीन थी, बंट चुकी है। थोड़ी होगी कहीं तो सिर्फ स्थाई निवासियों को ही मिल सकती है।
युवक- लेकिन मैं यहां का मूल निवासी हूं। हमारा परिवार
आम गरीब परिवारों में से था। रोजगार की तलाश में पिताजी को मुम्बई जाना पड़ा।
फिर उन्होंने हमें भी वहीं बुला लिया। दिन-रात मेहनत कर हमें पढाया। हमेशा कहते रहे पढ़ सीख कर काबिल बन जाओगे तो वापस उत्तराखण्ड लौट जाना। वहां तुम्हारे लाखों भाई, बहिनें हैं, जिनके सपने तरुणाई की शुरुआत में ही मुरझा रहे हैं। वहां लौटकर नई शुरुआत करना। जितनों को हो सके साथ लेना। जहां तक हो सके सही राह दिखाने की कोशिशें करना। उनकी,,
अफसर (थोड़ा भावुक होकर)- तुम्हारे पिताजी और तुम्हारी भावनाओं की कद्र करता हूं। लेकिन मजबूर हूं। तुम्हारी शिक्षा मुम्बई में हुई। यानी तुम बीस बाइस साल मुंबई में रहे। स्थाई निवासी होने के लिए उत्तराखंड में कम से कम पन्द्रह साल रहना जरूरी है। फिर चाहे मूल निवासी ही क्यों न हों।
युवक- लेकिन सर,,,
अफसर- सारी बेटा!

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भौंकुछ- विक्रम बिष्ट : हर,,हर,, दिदा’

भौंकुछ – विक्रम बिष्ट:
हर,,हर,, दिदा’
आप मानो चाहे ना मानो, उत्तराखंड की राजनीति में यदि रस है तो हरदा और हरक सिंह भैजी की बदौलत है।
भारतीय काव्य शास्त्र में नौ रस हैं। इन दोनों में सभी के अलावा भी कई समरस हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि दोनों अपनी-अपनी जगह वरिष्ठ हैं। हरीश रावत १९८० में डाक्टर मुरली मनोहर जोशी को हराकर राष्ट्रीय राजनीति में प्रविष्ठ हुए। हरक सिंह उत्तर प्रदेश की पहली भाजपा सरकार में मंत्री।
हाल फिलहाल उत्तराखंड की राजनीति इनकी जुगलबंदी के इर्द-गिर्द घूम रही है। वीर रस कब शांत रस के साथ रौद्र रूप का श्रिंगार कर अद्भुत वीभत्स हास्य में प्रकट हो जाए, बड़े-बड़े राजनीतिक ज्योतिषी नहीं बता पाते हैं।
इधर दो विधायकों को अपने पाले में लाकर भाजपा के तीस मारखां चौड़े हो रहे थे। उधर कांग्रेस ने सीधे सपुत्र मंत्री को समेट कर नहले पर दहला नहीं सीधे हुकुम के इक्के के साथ गद्दी अपनी पक्की
घोषित कर दी।
बीच में हरदा और हरक भैजी के श्री मुखों से वीर, करुणा, रौद्र, श्रृंगार सहित सभी रस प्रवाहित हुए और भाजपा कांग्रेस फुस्स। बहुत कोशिशें की थीं, थैली मीडिया के साथ बाक़ी को भी घेरघार कर मेले सजाने की।
इधर से एक सुर निकला उधर से भी बजा। रस कौन-कौन सा था, सुर्खियां तो हरदा और हरक सिंह बटोर ले उड़े। जय बाबा केदारनाथ।

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भौंकुछ- विक्रम बिष्ट कल के घोड़े आज महापापी!

भौंकुछ विक्रम बिष्ट
कल के घोड़े आज महापापी!

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भौंकुछ :विक्रम बिष्ट -कल के घोड़े आज महापापी!

भौंकुछ विक्रम बिष्ट
कल के घोड़े आज महापापी!

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भौंकुछ। विक्रम बिष्ट: बेवकूफ बनाने के लिए धन्यवाद!

पांच साल तक बेचारी हूं, लेकिन हमेशा तुम्हारी हूं। तुम्हारे लिए कुंवारी हूं।
चाहे जिस रंग में तुम आओगे, मुझे पूरा विश्वास है। पांच साल पहले भी था, उसके पहले पांच साल,,, और पहले,,,। कितना याद करूं। तुम्हें तो मेरी याद आ ही जाती है, इतना व्यस्त और मस्त-मस्त रहते हुए भी।
तुम कहां- कहां व्यस्त और मस्त रहते हो, भला मैं क्यों परेशान रहूं। पांच साल में ही सही तुमको आना मेरे पास ही है। जो वादा किया निभाना पड़ेगा, मधुर गीत गाते हुए कितने अच्छे लगते हो। वादा तेरा वादा,,, नासपीटे बात-बे-बात तुम्हारी वादाखिलाफी की याद दिलाते रहते हैं।
तुम बेवफा नहीं हो, मुझे पक्का विश्वास है। जितना तुमको अपने वादे और इरादों पर है। वादे पूरे नहीं हुए तो क्या, इरादे तो पूरे कर लिए होंगे, पक्का ! हाय दयां मरि जावां।
मैं तुम्हारी हूं, तुम्हारे लिए कुंवारी हूं। लोग बेवकूफ मानें तो मानें। मैं तुम्हारी हूं,,,हूं,,, हूं,।

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भौंकुछ -विक्रम बिष्ट : हरदा का हरेला, पंजाब में करेला।

भौंकुछ विक्रम बिष्ट
हरदा का हरेला, पंजाब में करेला।

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