
समाचार पत्रों की रिपोर्ट के अनुसार 734 गांव खाली हो चुके हैं। सरकारो ये सोचना होगा आखिर ये बसबसाये ये गांव आखिर किन कारणो से खाली होते जारहे हैं। स्पष्ट है रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओ का अभाव शीर्ष में रहा है। हमेशा राज्य बनने से पहले भी और राज्य बनन के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है। इसके लिये हमारे नीति नियन्ताओ को जिम्मेदार माना जा सकता है। यदि हर बर्ष पलायन के एक ही कारण पर कार्य होता तो 22 बर्ष के इस युवा उत्तराखण्ड की स्थिति कुछ और ही होती ,लेकिन इसके पीछे जो कारण हम समझ पाये,उसमें बिना सोचे समझे उसकी उपयोगिता जाने योजनाये बनाना और उस पर जनता का धन का अपव्यय करना है । यदि योजनाये बनती है तो उनके अनुरक्षण की दिशा में ध्यान ही नही दिया जाता है और योजनाये बनने के साथ ही खराब होने लगती हैं । तब चाहे गांव की सड़कें , नहरे हो ,पेयजल योजनाये,या शिक्षा के मन्दिर ,या स्वास्थ केन्द्र हों । हमने देखा कई भवन बनकर वीरान पड़े पड़े खराब हो गये हैं , जिस पर पैसा, समय , मेहनत सब बरबाद हो गया। इसलिये ऐसी योजनाये बननी चाहिये जो उपयोगी हों और जनता को सीधा लाभ मिले।
दूसरा मुख्य कारण है पहाड़ों की नदियों पल बडे बडे बांधो का निर्माण कर यहां के कई पलायन के लिये मजबूर हुये या मजबूर किये गये। जरूरी विकास जरूरी है,लेकिन विस्थापन के दंश की शर्त पर नहीं होना चाहिये। इन बांधो के कारण यहां संस्कृति, भूगोल , इतिहास सब बदल गये। केन्द्र व राज्य सरकारों को चाहिये कि वे छोटे बांधो के साथ ही सौर ऊर्जा,हवा से ऊर्जा पैदा करने की दिशा को आगे बढाना चाहिये , इससे साथ स्थानीय लोगो की गैर उपजाऊ भूमि का उपयोग होगा तो , सीधा रोजगार व आय के स्रोत बनेगे। पर्यटन के नये केंद्र बनेगे और पलायन रूक सकेगा।