सू.वि.टिहरी ‘‘प्रतिभावान नरेश सजवाण ने नौकरी छोड़कर स्वरोजगार को दिया महत्व। युवाओं को कर रहे हैं प्रेरित।‘‘ ‘‘विभिन्न सरकारी योजनाओं से लाभान्वित नरेश सजवाण जैविक और एकीकृत खेती से बढ़ा…
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बढ़ता पलायन और खाली होते गांव चिंता के विषय – एस एम बिजल्वाण।
समाचार पत्रों की रिपोर्ट के अनुसार 734 गांव खाली हो चुके हैं। सरकारो ये सोचना होगा आखिर ये बसबसाये ये गांव आखिर किन कारणो से खाली होते जा रहे है। स्पष्ट है, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओ का अभाव शीर्ष में रहा है। हमेशा राज्य बनने से पहले भी और राज्य बनने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है। इसके लिये हमारे नीति नियन्ताओ को जिम्मेदार माना जा सकता है। यदि हर बर्ष पलायन के एक ही कारण पर कार्य होता तो 22 बर्ष के इस युवा उत्तराखण्ड की स्थिति कुछ और ही होती ,लेकिन इसके पीछे जो कारण हम समझ पाये,उसमें बिना सोचे समझे उसकी उपयोगिता जाने योजनाये बनाना और उस पर जनता का धन का अपव्यय करना है । यदि योजनाये बनती है तो उनके अनुरक्षण की दिशा में ध्यान ही नही दिया जाता है और योजनाये बनने के साथ ही खराब होने लगती हैं । तब चाहे गांव की सड़कें , नहरे हो ,पेयजल योजनाये,या शिक्षा के मन्दिर ,या स्वास्थ केन्द्र हों । हमने देखा कई भवन बनकर वीरान पड़े पड़े खराब हो गये हैं , जिस पर पैसा, समय , मेहनत सब बरबाद हो गया। इसलिये ऐसी योजनाये बननी चाहिये जो उपयोगी हों और जनता को सीधा लाभ मिले।
दूसरा मुख्य कारण है पहाड़ों की नदियों पल बडे बडे बांधो का निर्माण कर यहां के कई पलायन के लिये मजबूर हुये या मजबूर किये गये। जरूरी विकास जरूरी है,लेकिन विस्थापन के दंश की शर्त पर नहीं होना चाहिये। इन बांधो के कारण यहां संस्कृति, भूगोल , इतिहास सब बदल गये। केन्द्र व राज्य सरकारों को चाहिये कि वे छोटे बांधो के साथ ही सौर ऊर्जा,हवा से ऊर्जा पैदा करने की दिशा को आगे बढाना चाहिये , इससे साथ स्थानीय लोगो की गैर उपजाऊ भूमि का उपयोग होगा तो , सीधा रोजगार व आय के स्रोत बनेगे। पर्यटन के नये केन्र्द बनेगे और पलायन रूक सकेगा।
विलुप्ति की कगार पर गौरैया का जीवन, कई कारक डाल रहे हैं अस्तित्व पर संकट।
अपनी चिर-परिचित चहचहाहट से आपके- हमारे घरों के सन्नाटे में जीवन की आहट घोलने वाली और आंगन से लेकर छतों और आस-पास मौजूद दऱख्तों तक फुदकती रहने वाली प्यारी सी चुलबुली गौरैया का जीवन समय के साथ-साथ खतरे में पड़ता जा रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो गौरैया का पूरा अस्तित्व ही अब विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया है। इंसान की बदलती दिनचर्या इसकी मुख्य वजह है। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि हालात ऐसे ही रहे तो बहुत जल्द गौरैया का होना अतीत की बात हो जाएगी। जीव विशेषज्ञों का कहना है कि शहरों में लगातार हो रहे प्रदूषण, अनाजों में रासायनिक दवाइयों के इस्तेमाल और रेडिएशन के वजह से गौरैया पर इसका बुरा असर पड़ा है। अगर जल्द इस विलुप्त हो रहे पक्षियों को संरक्षित और संरक्षण करने का काम नहीं किया गया तो एक दिन यह पक्षी नजर नहीं आएंगे। मोबाइल टावर से निकलने वाले विकिरण, रासायनिक अनाज गौरैया के प्रजनन और अंडे देने की क्षमता में बुरी तरह से प्रभावित हुई है। शहरों के बाद अब ग्रामीण इलाकों में भी गौरैया विलुप्ति की कगार पर है। इंसानी आबादी में लगातार बढ़ते जा रहे कंक्रीट के मकान इसका मुख्य कारण हैं। ऐसे में अगर जल्द इनके संरक्षण के उपाय नहीं किए गए तो सुंदर चिड़िया हम सब देखने को तरस जाएंगे। विश्व गौरैया दिवस हर साल 20 मार्च को मनाया जाता है। गौरैया के प्रति जागरुकता बढ़ाने के उददेश्य से वर्ष 2010 में इस दिवस को मनाने की शुरुआत की गई थी। पिछले कुछ समय से गौरैया की संख्या में काफी कमी आई है और इनके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहा है। विश्व गौरैया दिवस, नेचर फॉरएवर सोसाइटी ऑफ इंडिया के साथ-साथ फ्रांस की इकोसेज एक्शन फाउंडेशन की शुरू की गई एक पहल है। सोसाइटी की शुरुआत फेमस पर्यावरणविद् मोहम्मद दिलावर ने की थी। उन्हें 2008 में टाइम मैगजीन ने हीरोज ऑफ एनवायरमेंट में शामिल किया गया था।
साल 2010 में पहली बार 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया गया। इसके बाद हर साल 20 मार्च को यह दिवस मनाया जाता है। इस दिवस पर गौरैया के संरक्षण के लिए काम करने वाले लोगों को गौरैया पुरस्कार से सम्मानित भी किया जाता है। गौरैया का वैज्ञानिक नाम पासर डोमेस्टिकस और सामान्य नाम हाउस स्पैरो है। इसकी ऊंचाई 16 सेंटीमीटर और विंगस्पैन 21 सेंटीमीटर होते हैं। गौरैया का वजन 25 से 40 ग्राम होता है। गौरैया अनाज और कीड़े खाकर जीवनयापन करती है। शहरों की तुलना में गांवों में रहना इसे ज्यादा पसंद है। जीवविज्ञानियों का कहना है कि गौरैया की संख्या का लगातार कम होते जाना मानव सभ्यता के लिए भी चिंताजनक है।