दुखद: नही रहे पदमश्री अवधेस कौशल

उत्तराखंड

देहरादून। पदमश्री से सम्मानित अवदेश कौशल का आज प्रातः मैक्स अस्पताल देहरादून में निधन हो गया। उन्हें जन सरोकारों के संघर्ष के लिए सदैव याद किया जाएगा ।उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने वाली सुविधाओं को हाई कोर्ट में चुनौती दे बंद कराने में भी उनका योगदान रहा है। जन सरोकारों की जो लड़ाई उन्होंने बंधुआ मजदूरी के खात्मे के लिए वर्ष 1972 में शुरू की थी, अंतिम समय तक तमाम मुकाम हासिल कर अनवरत जारी रही। देश में बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम-1976 लागू है तो उसका श्रेय पद्मश्री अवधेश कौशल को ही जाता है। वर्ष 1972 में तमाम गांवों का भ्रमण करने के बाद जब अवधेश कौशल ने पाया कि बड़े पैमाने पर चकराता क्षेत्र में लोगों से बंधुआ मजदूरी कराई जा रही है तो वह इसके खिलाफ खड़े हो गए। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की और बंधुआ मजदूरी का सर्वे करवाया। सरकारी आंकड़ों में ही 19 हजार बंधुआ मजदूर पाए गए। इसके बाद वर्ष 1974 मैच के अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों को बंधुआ मजदूरी से ग्रसित गांवों का भ्रमण कराया। जब सरकार को स्थिति का पता चला तो वर्ष 1976 में बंधुआ मजदूरी उन्मूलन एक्ट लागू किया गया।इसके बाद भी जब बंधुआ मजदूरों को समुचित न्याय नहीं मिल पाया तो इस लड़ाई को अवधेश कौशल सुप्रीम कोर्ट तक लेकर गए और दबे-कुचले लोगों के लिए संरक्षण की राह खोलकर ही दम लिया। हालांकि, जनता के हितों के संरक्षण का उनका अभियान यहीं खत्म नहीं हुआ और पर्यावरण के लिहाज से अति संवेदनशील दूनघाटी में लाइम की माइनिंग के खिलाफ भी अस्सी के दशक में आवाज पी आइ एल के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट बुलंद की। माइनिंग से मसूरी के नीचे के हरे-भरे पहाड़ सफेद हो चुके थे। इसके खिलाफ भी कौशल ने सुप्रीम कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ी और संवेदनशील क्षेत्र में माइनिंग को पूरी तरह बंद कराकर ही दम लिया।विकास से कोसों दूर रह रहे वन गूजरों के अधिकारों को संरक्षित करने का बीड़ा भी अवधेश कौशल ने उठाया। लंबी लड़ाई के बाद केंद्र सरकार वर्ष 2006 में शेड्यूल्ड ट्राइब्स एंड अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट ड्वेल्स एक्ट में वन गूजरों को संरक्षित किया गया। अलग-अलग आयाम से यह लड़ाई आज भी जारी है। उनके हालिया जारी प्रयास की बात करें तो दूरस्थ क्षेत्रों में स्कूल संचालन, महिला अधिकारों और पंचायतीराज में महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए अवधेश कौशल रूलक संस्था के माध्यम अंतिम समय तक प्रयासरत रहें हैं।

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