उफनती गोरी नदी के बहाव से सहमे ग्रामीण, 2017 की बाढ़ से प्रशासन ने नहीं लिया सबक

गोरी नदी में वर्षों से बड़ी मात्रा में गाद इकट्ठा होने के कारण इसका प्रवाह बदल गया है और यह खतरनाक रूप से आसपास के गांवों की तरफ बहने लगी है, जिससे वहां के निवासी चिंतित हैं। बंगापानी उपमंडल के गट्टाबगड़, चामी, लुम्टी, मोरी, मनमकोट, तोली, चोरीबगड़ समेत लगभग एक दर्जन गांवों के निवासियों ने जिला प्रशासन से नदी के प्रकोप से जान-माल की रक्षा करने की गुहार लगाई है। समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता और गोरी घाटी के उमारगारा गांव के निवासी मदन राम सान्याल ने कहा कि 2013 में आई बाढ़ में गोरी नदी के पास स्थित गोविंद राम, हयात राम और भरन राम की उपजाऊ जमीन पानी में बह गई और वे भूमिहीन हो गए। चोरीबगड़ गांव के एक किसान दिलीप सिंह ने बताया कि नदी के किनारे सुरक्षा दीवार न होने की वजह से 2017 में आई बाढ़ में उनकी तथा दो अन्य किसानों, माधो राम और दिवानी राम की 10 एकड़ से ज्यादा भूमि बह गई। उन्होंने कहा कि मानसून के चलते नदी अब उनके घर के और पास पहुंच गई है।

पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी आशीष चौहान ने बताया कि जिला प्रशासन ने गोरी नदी के किनारे सुरक्षा दीवार बनाने का प्रस्ताव उच्चाधिकारियों को भेज दिया है। उन्होंने कहा कि जिले की अन्य नदियों के मुकाबले गोरी नदी रिहायशी इलाकों के ज्यादा नजदीक बहती है। 

पिथौरागढ़ निवासी भूगर्भशास्त्री प्रदीप कुमार ने कहा गोरी नदी के किनारे स्थित गांव हजारों साल पहले नदी द्वारा लाई गई रेत पर बसे हैं। नदी के बीच में गाद इकट्ठा होने से नदी का बहाव गांवों की तरफ हो गया है। उन्होंने कहा कि नदी तल पर कोई कठोर चट्टान न होने के कारण सुरक्षा दीवारों के लिए बहुत गहराई तक खुदाई करनी पड़ेगी। कुमार के मुताबिक, नदी में से रेत निकालना और इसे गहरा बनाना भी एक विकल्प हो सकता है, ताकि उसे गांवों की तरफ बहने से रोका जा सके। हालांकि, यह प्रक्रिया काफी महंगी और जटिल है

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