उत्तराखण्ड आंदोलन के कुछ यादगार पल- विक्रम बिष्ट

उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड में इस समय क्रांति औतर रही है। सावधान! सुबह तक सबको,, सबकुछ ठोक,, ठीक कर देंगे।
बात पुरानी है। उत्तराखण्ड आंदोलन के एक कार्यक्रम की तैयारी के सिलसिले में हम प्रतापनगर क्षेत्र भ्रमण पर थे। इन्द्रमणि बडोनी, विजेन्द्र रतूड़ी जी,,। जबरदस्त बारिश के कारण हमें वापस लम्बगांव लौटना पड़ा। वहां एक रोचक मुलाकात हुई। वह सज्जन टिहरी से लौटे थे, और हमें रात उन्हीं के सहारे बितानी थी।
वहां नरेन्द्रनगर से डिप्टी सीएमओ सहित स्वास्थ्य विभाग की टीम भी पहुंची थी। विश्राम गृह से उन्हें टका – सा जवाब मिला यहां उत्तराखण्ड वाले आये हैं ,वे ही रहेंगे। बहरहाल हमने अपनी जरूरत सिमटा कर उन्हें जगह दिला दी। वे हमारी जगह होते तो शायद उनका ईगो इसकी इजाजत नहीं देता,,,।
श्रीनगर में उक्रांद का अधिवेशन था। हम कीर्तिनगर में रुके थे। हमें बताया गया कि यह दिवाकर भट्ट जी के लिए है। बड़ी जद्दोजहद के बाद कमरों में झोले रखने की सशर्त अनुमति मिली। जमानत के तौर पर विजिटिंग कार्ड देना पड़ा।
डालमिया धर्मशाला में अधिवेशन था। किसी ने खिड़की से पत्थर और कांच की बोतल के टुकड़े अंदर फेंक दिए। आनन- फानन सभा स्थगित करनी पड़ी। हां, उससे पहले चीला रेंज से वह वन गूजर भी आया था, जिसे वन कर्मियों ने सिर पर डण्डे मारे थे। वन गूजरों को जबरस्ती हटाया जा रहा था। हमारे जांबाज साथी इंद्रदत के साथ हम उनके पक्ष में वहां गये थे। हालांकि टिहरी से हम लखनऊ जाने के लिए चले थे। उसी बीच कुछ वनकर्मियों ने त्रेपन चौहान को घेर लिया था। उसको बचाना था,,।
दूसरे दिन सभा की शुरूआत श्रीनगर पीडव्लूडी विश्राम गृह में हुई। दिवाकर भट्ट जी को आंदोलन के फील्ड मार्शल की जिम्मेदारी दी गई।
चलिए छोड़िए, मैं आपको बोर क्यों करूं, पहली रात कीर्तिनगर लौटते हुए हमें रास्ते में अपने आश्रयदाता मिल गए। गाड़ी में बैठकर उन्होंने वही विजट़िंग कार्ड दिखाकर बताया कि वह बड़ी हस्ती हैं। एहसान जताते हुए आश्वस्त किया कि हमारी जगह उनकी कृपा से विश्राम गृह में सुरक्षित है। रात कट गई। सुबह जो हुआ कुछ संकेत ऊपर हैं।
पता नहीं क्यों किसी की सलाह पर विजिटिंग कार्ड छपा लिये थे। अलकनंदा तीरे अहसास हो गया कि आईडेंटिटी कार्ड आश्रित जिंदगी हमारी औकात के दायरे में नहीं है।

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