भौंकुछ -विक्रम बिष्ट

टिहरी
रणछोड़ों का ईवीएम रोदन
गुजरात चुनाव परिणामों को लेकर बेचारी ईवीएम पर आजकल फिर शक किया जा रहा है। बेचारी तो गुजरात वाली ही हैं। हिमाचल वाली ईवीएम तो इतरा रही हैं, लो हम कितनी पाक साफ हैं। पिछली वाली रही होंगी,, बाकी यूपी, बिहार लूटने…
नाच ना जाने आंगन टेढ़ा और इसके उलट- हारे को हरि नाम जैसे मुहावरे अब आउट ऑफ चलन हैं। एक जमाने लोग हार को भी गरिमापूर्वक स्वीकार कर लिया करते थे। अवसरों की छीना-झपटी के बीच गरिमा तो कब की सन्यास ले चुकी है। शायद वानप्रस्थी नहीं है। सो शंकालु जन बैलट वापसी की ही मांग कर रहे हैं। बाकी तो गरिमा के लिए रोना है। लेकिन अपने लिए नहीं ! अपने लिए तो वही,,, चाहिए।
वैसे कुछ लोग दुविधा में हैं। कभी उन्हें भी ईवीएम पर शक था। तब वे सत्ता के पाले के उस पार थे, दायें से भी और बायें से भी।
सैम पित्रोदा जब भारत पधारे थे तो कुछ यूं माहौल बनाने की कोशिशें की जा रही थीं, मानो भारतीय संस्कृति पर सबसे बड़ा आक्रमण आमंत्रित किया गया है।
हिमाचल में आप और गुजरात में कांग्रेस रण छोड़ कर भाग गई थीं। जो मैदान में डटे रहे, वे जीत गए। जो ऐसे मौकों पर तटस्थ किंतु धरातल के दर्शक होते हैं, वे ही जानते हैं कि सच पन्ना प्रमुख बनाम अन्य के बीच जोर आजमाइश का होता है। वरना आखिर बेईमानी भी तो बेईमानी का साथ देती है।

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