जोशीमठ में भू-धंसाव की चपेट में आया ज्योतिर्मठ परिसर,मंदिर के आस पास पड़ी बड़ी-बड़ी दरारे

उत्तराखंड

जोशीमठ में भू-धंसाव की चपेट में ज्योतिर्मठ परिसर भी आ गया है। शंकराचार्य की गद्दी स्थल की सामने आई तस्वीरें हर किसी को तकलीफ पहुंचा रही है। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि ज्योतिर्मठ भी इसकी चपेट में आ रहा है। उन्होंने प्रदेश सरकार से भू-धंसाव से प्रभावित परिवारों को त्वरित राहत पहुंचाने और उनके पुनर्वास की समुचित व्यवस्था करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि पिछले एक वर्ष से जमीन धंसने के संकेत मिल रहे थे। लेकिन समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती शुक्रवार को हरिद्वार पहुंचे। कनखल स्थित शंकराचार्य मठ में पत्रकारों से वार्ता करते हुए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि जोशीमठ में जमीन धंसने की घटना बेहद चिंताजनक है। ऐतिहासिक एवं पौराणिक सांस्कृतिक नगर जोशीमठ खतरे में हैं। एक सप्ताह से जमीन धंसने से 500 से अधिक मकान प्रभावित हुए हैं। मकानों में दरारें आ गई हैं। शंकराचार्य ने कहा कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर जोशीमठ के हालातों की जानकारी देंगे, ताकि सकारात्मक पहल हो सके। प्राथमिकता से पीड़ितों का पुनर्वास कराया जा सके। उन्होंने कहा कि उनके सभी कार्यक्रम स्थगित हो गए हैं। शनिवार को वह स्वयं प्रभावित क्षेत्र का निरीक्षण करने जोशीमठ जाएंगे। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि हिमालय में जो कुछ हो रहा है, उसको लेकर लंबे समय से चिंता व्यक्त की जा रही थी। इसकी अनदेखी होते रही, जिसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। जमीन धंसने को लेकर अलग-अलग कारण बताए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को सही कारण का पता लगाना चाहिए।गंगा की अविरलता और बड़ी बांधों के खिलाफ आवाज उठाने वाले मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती ने कहा कि पहाड़ों के नीचे से बनाई जा रही सुरंगों से जोशीमठ धंस रहा है। इन परियोजनाओं को बंद करने की मांग पूर्व प्रोफेसर ब्रह्मलीन ज्ञानस्वरूप सानंद ने उठाई थी। उन्होंने कहा कि मातृ सदन और उनकी मांग नहीं मानने पर आज लोगों को यह दिन देखना पड़ रहा है। शुक्रवार को प्रेस को जारी बयान में परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती ने कहा कि मातृ सदन इस बात को कई वर्षों से उठा रहा है, पूर्व प्रोफेसर ज्ञानस्वरूप सानंद जैसे वैज्ञानिक ने भी पहाड़ों पर बन रही परियोजनाओं को बंद करने की मांग की थी। इसमें एक तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना भी थी। पर उनकी मांग नहीं मानी गई।उन्होंने कहा कि ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद के 194 दिन के अनशन के दौरान प्रधानमंत्री की ओर से पत्र भेजकर वादा किया गया था कि आपकी मांगी पूरी की जाएंगी, पर उसको पूरा नहीं किया गया। इसके बाद साध्वी पद्मावती ने अनशन किया। वह संघर्ष करतीं-करतीं व्हीलचेयर पर आ गई हैं। यदि उसी वक्त इस परियोजना को बंद कर दिया गया होता तो आज ऐसे हालात पैदा नहीं होते। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से जोशीमठ के लोग उग्र होकर आज रोड पर निकल आए हैं, यदि वह पहले आ जाते तो उन्हें शायद जोशीमठ न धंसता। उन्होंने कहा कि गलत रिपोर्ट के आधार पर सुरंग और परियोजनाएं बनाई जा रही हैं। स्वामी शिवानंद ने कहा कि यदि जोशीमठ को बचाना है तो निर्माणाधीन परियोजना रोक दें और निर्मित बांध को खत्म कर दें। उत्तराखंड को दैवी आपदाओं से बचाना है तो लोग और सरकार मातृ सदन के मत को माने।

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