सामाजिक सरोकार- विक्रम बिष्ट

टिहरी

लोकसभा चुनाव नौ महीनों के बाद होंगे या इसी साल सर्दियों में, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के अलावा कोई नहीं जानता है। उत्तराखण्ड में नगर निकाय चुनाव महीनों टलना लगभग तय है। यह लोकतंत्र के लिए हमारी ईमानदारी और प्रतिबद्धता का चिरपरिचित प्रहसन है। बहरहाल भाजपा हर वक्त चुनावी मोड में रहती है, इसलिए उसके जमीनी स्तर के कार्यकर्ता तैयारियों में जुटे हुए हैं। राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए के मुकाबले यूपीए जैसे चुनावी गठबंधन के प्रयासों को लेकर उत्तराखण्ड में कोई उत्साह दिखता है ? यहां तो फिलहाल मुकाबले में कांग्रेस है, वही कहां खड़ी है !
चर्चा है कि भाजपा इस बार लोकसभा चुनावों में बड़े बदलाव कर सकती है। जीत के पैमाने पर वर्त्तमान सांसदों में कोई खरा नहीं उतरता है। 1991 के चुनावों से टिहरी सीट पर लगभग पांच साल छोड़कर लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व राज परिवार को भी पार्टी के भीतर से तगड़ी चुनौती मिल रही है। कम से कम तीन महिला नेताओं की प्रबल दावेदारी की चर्चा है।
कांग्रेस के घाट पर फिलहाल ज्यादा हलचल नहीं है। इसके सबसे अनुभवी और कद्दावर नेता हरीश रावत अपनी पारी खेल चुके हैं। हर वक्त अपने पार्टीजनों जिनमें कभी उनके लिए जान लड़ाने वाले युवा भी थे, धोबी पछाड़ देने की हरदा की लत ने आखिरकार कांग्रेस को इस स्थिति में पहुंचा दिया है कि कम से कम सम्मान जनक मुकाबले की उम्मीद इस चुनाव में नहीं दिखाई देती है। दिल्ली में बैठे पार्टी प्रभारियों को लेकर बेहद गंभीर आरोप रहे हैं। पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह को किनारे करने की कोशिश हालिया उदाहरण है।

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