पप्पू यदि राजनीतिक पप्पू है तो इतना डर कैसा? – विक्रम बिष्ट

टिहरी

पप्पू यदि राजनीतिक पप्पू है तो उससे इतना डर कैसा? बार-2 तो लोग इतना अपने ईष्ट का नाम भी नहीं जपते हैं। आलोचना में अभद्र भाषा का प्रयोग नफरत, कमजोरी और डर से पैदा होता है। देश सभी का है, खुद को साबित करने के लिए गला फाड़कर चिल्लाने की आवश्यकता नहीं है।
लोकतंत्र की खूबी सहमति से अधिक जायज असहमति और उसके प्रति सम्मान में है। सत्ता वर्ग की जिम्मेदारी अधिक बड़ी है। उसे अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए उचित तरीकों का उपयोग करने का उतना ही अधिकार है जितना विपक्ष को सत्ता हासिल करने का। लेकिन शासन व्यवस्था की जवाबदेही, सेवाएं और संशाधन आम जनता के हैं। कल किसी ने दुरुपयोग किया है तो आज को इस प्रवृत्ति से दूर रहकर अच्छी मिसाल कायम करनी चाहिए। सत्ता की उस प्रवृत्ति में बदलाव भी जनता की मंशा थी।

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