
टिहरी
” मैं जरा भी इशारा कर दूं, तो मैदान में हमारे लोग उसका जवाब दे देंगे। अगर हमारे कार्यकर्ता सड़कों पर आयें, तो शहरों में रहनेवाले पहाड़ी लोगों को वापस पहाड़ पर जाना होगा।” 17 अगस्त 1994 को यूपी के सीएम मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ प्रेस सम्मेलन में यह चेतावनी दी थी। यह आह्वान भी था ?
मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का ओबीसी आधार मजबूत करने के लिए शिक्षण संस्थाओं में 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी। तब यूपी में सपा-बसपा गठबंधन सरकार थी। तीर उत्तराखण्ड को लगा, जहां ओबीसी 2 प्रतिशत के लगभग थे । मुख्यमंत्री की उस घोषणा की प्रतिक्रिया पूरे प्रदेश में हो रही थी। लेकिन पौड़ी में इन्द्रमणि बडोनी सहित उक्रांद नेताओं की गिरफ्तारी के बाद पहाड़ को राजनीतिक लडा़ई का मैदान बनाने का अवसर मिल रहा था। मुलायम और भाजपा दोनों के लिए अवसर था। फर्क सिर्फ इतना था कि सपा को सवर्ण बहुल उत्तराखण्ड में जो थोड़ी राजनीतिक जमीन थी, सिर्फ उसे खोना था। भाजपा के लिए यह यूपी में ऊंची जातियों को एकजुट करने का अवसर था। लेकिन उसको आंदोलन में उक्रांद को मिल रही बढ़त से अपना वह जनाधार खिसकने का डर सता रहा था, जो पृथक राज्य के साथ मन्दिर मुद्दे का घालमेल कर उसने उक्रांद से लपक लिया था।
इस पर व्यापक बहस की आवश्यकता है। खासतौर पर उन लोगों को जो चाहते हैं कि उत्तराखण्ड उन्माद की तरफ बढ़ती कोरी भावुकता से उबर कर सर्वांगीण विकास के स्वाभाविक पथ पर आगे बढ़े।
1989 के आम चुनावों में उक्रांद को दो विधानसभा सीटें मिली थीं, लगभग आधा दर्जन सीटों पर कांग्रेस से करीबी मुकाबला। टिहरी गढ़वाल और अल्मोड़ा लोकसभा सीटों पर इसके प्रत्याशी मामूली अंतर से हारे थे। लोकसभा की दो – दो सीटें कांग्रेस और वीपी सिंह के जनता दल को मिली थीं। भाजपा की अल्मोड़ा लोकसभा सीट पर भी जमानत जब्त हो गई थी, वहां से डॉ. मुरली मनोहर जोशी 1977 में एमपी चुने गए थे। जनता दल वीपी सिंह और उनके साथ जुड़े कांग्रेसियों पर निर्भर था। उस चुनाव के बाद उक्रांद में कांग्रेस का विकल्प बनने की संभावनाएं दिखने लगी थीं। रोचक तथ्य यह है कि 1991 में टिहरी और अल्मोड़ा लोकसभा सीटों पर जीते भाजपा उम्मीदवार मानवेन्द्र शाह और जीवन शर्मा उक्रांद से ही भाजपा में शामिल हुए थे।
फिर क्या हुआ ? ,,,,,
आज 18 अगस्त इन्द्रमणि बडोनी जी की पुण्य तिथि है, सामान्य राजनीतिक नेता से बहुत आगे, दूरदृष्टि सम्पन्न व्यक्तित्व। घुत्तू की संकरी गली में ग्रामीणों के बीच बैठकर उत्तराखण्ड के भविष्य के लिए बतियाते और अग्रगामी सोच के समर्पित युवाओं का बेसब्र इंतज़ार और श्रीनगर में लौटते वक्त उनका वही सवाल! शब्दों से अधिक बेचैन आंखें!