चांद की ओर अकेले निकला चंद्रयान का विक्रम लैंडर, अब चांद के दक्षिणी छोर पर लहराएगा तिरंगा

उत्तराखंड

ISRO ने चंद्रयान-3 मिशन के एक अहम पड़ाव को पार कर लिया है। चंद्रयान से अलग होकर लैंडर विक्रम अब अकेले ही चांद की ओर बढ़ चला है। तकनीकी भाषा में कहें तो प्रॉपल्शन मॉड्यूल के साथ सफर कर रहा लैंडर अलग हो चुका है। अल लैंडर विक्रम को आगे का रास्ता अकेले तय करना होगा। यह भी जान लीजिए कि विक्रम लैंडर ही 23 अगस्त को शाम 5.25 बजे चांद पर लैंड करेगा। साइंटिस्ट टी. वी. वेंकटेश्वरन ने बताया कि लैंडर के पेट के अंदर रोवर मौजूद है। धरती से अब तक लैंडर और रोवर के साथ प्रॉपल्शन मॉड्यूल ने सफर तय किया था। 17 अगस्त की दोपहर इसरो ने सेपरेशन का फैसला किया, इससे दो चीजें स्पष्ट हो जाती हैं। पहला, लैंडर मॉड्यूल का इंजन और दूसरी चीजें ठीक से काम कर रही हैं। अलग होने के बाद लैंडर अपने पैरों पर खड़ा हो गया है यानी उसके पास पूरी क्षमता है। दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात लैंडर अलग होने के बाद अब वह 23 अगस्त को चांद पर लैंडिंग करेगा।

इसी के साथ चंद्रयान-3 का लैंडर अब चांद के और करीब पहुंच गया है। 23 अगस्त को यह चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। आखिर चंद्रयान-3 है क्या? इस मिशन में अभी क्या हुआ है? चंद्रयान-3 का अगला पड़ाव क्या? चंद्रमा की सतह पर क्या करेगा चंद्रयान 3? समझते हैं

चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा। इसमें एक प्रणोदन मॉड्यूल, एक लैंडर और एक रोवर है। चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया है। 

चंद्रयान-3 ने 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा केन्द्र से उड़ान भरी और सब कुछ योजना के अनुसार होता है तो यह 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। मिशन को चंद्रमा के उस हिस्से तक भेजा जा रहा है, जिसे डार्क साइड ऑफ मून कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह हिस्सा पृथ्वी के सामने नहीं आता।

भारत के चंद्रयान-3 मिशन के लिए गुरुवार को बड़ी खुशखबरी आई। चंद्रयान-3 के लैंडर और प्रॉपल्शन मॉड्यूल योजना के मुताबिक, दो टुकड़ों में बंटकर अलग-अलग चांद की यात्रा कर रहे हैं। इसरो ने ट्वीट कर बताया कि प्रॉपल्शन मॉड्यूल मौजूदा कक्षा में महीनों या वर्षों तक अपनी यात्रा जारी रख सकता है। प्रॉपल्शन मॉड्यूल में पृथ्वी के वायुमंडल का स्पेक्ट्रोस्कोपिक अध्ययन करने और पृथ्वी पर बादलों से ध्रुवीकरण में भिन्नता को मापने के लिए स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हेबिटेवल प्लानेट अर्थ (SHAPE) पेलोड लगा हुआ है। यह हमें इस बारे में जानकारी देगा कि चंद्रमा रहने योग्य है या नहीं।

चंद्रयान-1 के परियोजना निदेशक रहे एम अन्नादुरई कहते हैं कि लैंडर मॉड्यूल का अलग होना बड़ा मौका है। अब हमें पता चलेगा कि लैंडर कैसा काम कर रहा है। लैंडर अब प्रमाणित होगा और इसकी जांच की जाएगी, जिसके बाद इसे धीरे-धीरे चांद के करीब लाया जाएगा। फिर इसे आवश्यक निर्देश दिए जाएंगे, ताकि यह 23 अगस्त को लक्षित स्थान तक जाने और सुरक्षित लैंडिंग करने के लिए सिग्नल ले ले। 

मिशन के अगले पड़ाव में अब लैंडर मॉड्यूल आज चांद की निचली कक्षा में पहुंचाया जाएगा। एजेंसी ने एक बयान में बताया कि शुक्रवार शाम चार बजे इसे चांद की कक्षा में और नीचे उतारा जाएगा। इस प्रक्रिया के बाद लैंडर मॉड्यूल 153 x 163 किमी की वर्तमान निकट-गोलाकार कक्षा से चंद्र सतह की ओर उतरेगा।

कुल मिलाकर, लैंडर अपने आप ही दो कक्षा-घटाने के अभ्यास को अंजाम देगा। यह पहले 100 x 100 किमी की गोलाकार कक्षा में प्रवेश करेगा और फिर 100 x 30 किमी की कक्षा में चंद्रमा के और करीब जाएगा। इसी कक्षा से 23 अगस्त को लैंडर चंद्रमा पर उतरने के लिए अपना अंतिम अभ्यास को शुरू करेगा।

चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल ने इस बार सॉफ्ट लैंडिंग के लिए अहम बदलाव किए गए हैं। इसमें किसी भी अप्रत्याशित प्रभाव से निपटने के लिए पैरों को मजबूत किया गया है। इसके साथ अधिक उपकरण, अपडेटेड सॉफ्टवेयर और एक बड़ा ईंधन टैंक लगाए गए हैं। यदि अंतिम मिनट में कोई बदलाव भी करना पड़ा तो ये उपकरण उस स्थिति में महत्वपूर्ण होंगे। 

चंद्रयान-3 मिशन में लैंडर, रोवर और प्रॉपल्शन मॉड्यूल शामिल हैं। लैंडर और रोवर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेंगे और 14 दिनों तक प्रयोग करेंगे। वहीं प्रॉपल्शन मॉड्यूल चांद की कक्षा में ही रहकर चांद की सतह से आने वाले रेडिएशंस का अध्ययन करेगा। इस मिशन के जरिए इसरो चांद की सतह पर पानी का पता लगाएगा और यह भी जानेगा कि चांद की सतह पर भूकंप कैसे आते हैं। इसरो के पूर्व वैज्ञानिक अन्नादुरई कहते हैं, ‘चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र का पता इसलिए भी लगाया जा रहा है, क्योंकि इसके आसपास स्थायी रूप से छाया वाले क्षेत्रों में पानी की मौजूदगी की संभावना हो सकती है।’

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