
टिहरी
उत्तराखंड के शहीदों को नमन !
खटीमा काण्ड: रहस्य,,
1994 आज (1) हम इस समय पौड़ी में। टिहरी परिसर के प्राचार्य डॉ, पी.एस. रावत, बड़थ्वाल जी ,। रैली का आह्वान उत्तराखंड छात्र संयुक्त संघर्ष समिति ने किया था। मंच पर छात्र नेताओं के बीच घमासान से निराश हजारों लोग लौटने लगे थे।
हम भी, उसी वक्त बडोनी जी पौड़ी लौटते दिखे।
लौटती हुई गाड़ियों को जाम का सामना करना पड़ा। कुछ दूर आगे आकर देखा कि ऊपर पुलिस के जवान राइफल ताने खड़े थे।
शायद (!) प्रशासन को खटीमा की सूचना मिल गई थी।
तब सूचना का संसार हर हाथ-कान को उपलब्ध नहीं था। आज जैसी बात होती तो सोचिए उस दिन पौड़ी में क्या होता ?
30 अगस्त को लखनऊ में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की बैठक में उत्तराखंड (आरक्षण विरोधी) आंदोलन को बलपूर्वक कुचलने का निर्णय लिया गया था। खटीमा काण्ड इसका नमूना था। मसूरी प्रतिक्रिया थी। लेकिन,,,? तराई में भूमि,वन, खनन माफिया और ठेठ पहाड़ पर इसकी सवारी की बड़ी भूमिका में शराब,,,,,उनके सरपरस्त या चरणदास नेता और सरकारी नुमाइंदे । उसके बरक्स जीवन के हर पल खोते थारू, बोक्सा जनजातियां और उनके हकों को लड़ते लोग (पत्रकार सुप्रिय लखनपाल का नाम आज के त्रिलोक दर्शी पत्रकारों के लिए बेकार ही है)।
यह कहानी तो देश की आजादी के दिनों से शुरू हुई थी.