टिहरी: उत्तराखण्ड मांगे भू – कानून महारैली टिहरी में जुटे हजारों लोग

टिहरी

टिहरी। मूल निवास 1950 और सशक्त भू-कानून लागू किए जाने की मांग को लेकर टिहरी में मूल निवास स्वाभिमान महारैली का आयोजन किया गया। रविवार को हुई इस महारैली में टिहरी समेत प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से हजारों लोग शामिल हुए।

क्या है मूल निवास 1950 ? .
26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ जिसके अनुसार 1950 से जो नागरिक जिस जगह का निवासी है यहाका मूल निकाली है।

(उत्तराखंड को छोड़कर सभी जगह मूल निवास 1950 लागू है) जिस नागरिकों का परिवार 1950 या उससे पहले से उनक रहा हो वो उत्तराखंड का मूल निवासी है (लगभग 83 प्रतिषत उत्तराखंड मूल निवासी है)

क्या फायदा होगा ?
मूल निवास 1950 के आधार पर राज्य के सभी सरकारी / प्राइवेट क्षेत्रों में 70 प्रतिषत नौकरियों पर मूल निवासियों का अधिकार होगा।
मूल निवास 1950 के आधार पर नवोदय स्कूलो, डिग्री कॉलेजो, इंजीनियरिंग कालेजो, मेडिकल कालेजों व ऐसे अनेको षिका सल्यानी में 70

प्रतिषत सीटो पर मूलनिवासी को ही अधिकार होगा।
मूल निवास 1950 के आधार पर राज्य संसाधनों पर अधिकार मूल निवासयिों का होगा।

‘मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति’ के आह्वान पर हुई इस महारैली में प्रदेश के विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों ने शिरकत की। कार्यक्रम के तहत नई टिहरी के सुमन पार्क से गणेश चौराहा बौराड़ी तक महारैली निकाली गई। महारैली से पहले सुमन पार्क में सभा का आयोजन किया गया, जिसमें प्रदेशभर से आए आंदोलनकारियों ने अपने विचार रखे।

‘मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति’ के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि टिहरी त्याग और बलिदान की भूमि है। देहरादून और हल्द्वानी में मूल निवास स्वाभिमान महारैली की सफलता के बाद टिहरी में महारैली हो रही है। टिहरी में हुई इस महारैली का संदेश पहाड़ के गांव-गांव तक जाएगा और लोग अपने अधिकारों के लिए जागरूक होंगे।
उन्होंने कहा कि टिहरी की माटी ने कई लाल पैदा किए। जिसमें मुख्य रूप से वीर भड़ माधो सिंह भंडारी, कफ्फू चौहान, उत्तराखंड के गांधी इंद्रमणि बडोनी, जन क्रांति के नायक श्रीदेव सुमन, राज्य आंदोलन में शहीद हुए गंभीर सिंह कठैत, चिपको आंदोलन के प्रणेता सुन्दरर लाल बहुगुणा, पहाड़ के संसाधनों को बचाने के लिए अंतिम सांस तक लड़ने वाले पत्रकार राजेन टोडरिया जैसी महान हस्तियों ने अपने समाज के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया। हम अपने पुरखों से मिली संघर्ष की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।

संयोजक मोहित डिमरी ने यह भी कहा कि टिहरी के लोगों की त्याग और तपस्या से आज देश के कई राज्य रोशन हो रहे हैं। अपनी जमीन, अपने पुस्तैनी घर, अपने जंगल सब कुछ कुर्बान करने के बाद भी टिहरीवासी उपेक्षित हैं। आज टीएचडीसी में बाहर के लोग नौकरी कर रहे हैं। मूल निवासियों के लिये यहां नौकरियां नहीं है। टिहरी झील के आसपास का पूरा क्षेत्र ही नहीं चंबा, धनोल्टी का क्षेत्र बाहर के लोगों ने खरीद दिया है। यहां बन रहे रिसोर्ट/होटल में बाहर के लोग मूल निवासियों को नौकर/चौकीदार बना रहे हैं। हम चाहते हैं कि हमारे लोगों का अपनी जमीन पर मालिकाना हक हो। वह अपनी जमीन पर उद्योग लगाए और इससे अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करे।

उन्होंने यह भी कहा कि पर्यटन के लिहाज से टिहरी में बहुत संभावनाएं हैं। टिहरी झील में वॉटर स्पोर्ट्स, एडवेंचर की गतिविधियों से यहां के लोगों को रोजगार मिल सकता है। लेकिन इस पर भी बाहरी लोग कब्जा करना चाहते हैं। बाहरी ताकतों से लड़ने के लिए सभी को एकजुट होना होगा। आज हमारी सांस्कृतिक पहचान का भी संकट खड़ा हो गया है। हमारी संस्कृति का हिस्सा टिहरी की सिंगोरी मिठाई, टिहरी की नथ भी खतरे में है। इसे बचाने की लड़ाई हम सभी को लड़नी है।

मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के सह संयोजक लुशुन टोडरिया ने कहा कि 40 से ज्यादा आंदोलनकारियों की शहादत से हासिल हुआ हमारा उत्तराखंड राज्य आज 23 साल बाद भी अपनी पहचान के संकट से जूझ रहा है। उन्होंने कहा कि 23 साल बाद भी यहां के मूल निवासियों को उनका वाजिब हक नहीं मिल पाया है और अब तो हालात इतने खतरनाक हो चुके हैं कि मूल निवासी अपने ही प्रदेश में दूसरे दर्जे के नागरिक बनते जा रहे हैं।

टोडरिया ने कहा कि टिहरी में उनका बचपन बीता है। उनकी बहुत सारी यादें टिहरी से जुड़ी हुई हैं। इस माटी की ताकत के कारण ही वह अपने समाज की लड़ाई लड़ पा रहे हैं। उनके माता-पिता भी राज्य आंदोलनकारी रहे हैं। उनकी ही प्रेरणा से इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं।

राज्य आन्दोलनकारी एवं संघर्ष समिति टिहरी के संयोजक राकेश भूषण गोदियाल, संघर्ष समिति टिहरी के सदस्य देवेंद्र नौडियाल, ज्योति प्रसाद भट्ट, महावीर उनियाल, अनुराग पंत, एवं कोर मेंबर प्रांजल नौडियाल ने कहा कि मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 लागू करने के साथ ही प्रदेश में मजबूत भू-कानून लागू किया जाना बेहद जरूरी है। कहा कि मूल निवास का मुद्दा उत्तराखंड की पहचान के साथ ही यहां के लोगों के भविष्य से भी जुड़ा है। उन्होंने कहा कि मूल निवास की लड़ाई जीते बिना उत्तराखंड का भविष्य असुरक्षित है।

विधायक विक्रम सिंह नेगी, पूर्व राज्यमंत्री प्रवीण भंडारी, अभिनव थापर, पहाड़ी स्वाभिमान सेना अध्यक्ष आशीष नेगी, संरक्षक आशुतोष नेगी ने कहा कि उत्तराखंड के मूल निवासियों के अधिकार सुरक्षित रहें, इसके लिए मूल निवास 1950 और मजबूत भू-कानून लाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि आज प्रदेश के युवाओं के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है।

क्या है सख्त भू-कानून ?

प्रत्येक राज्य का भू संरक्षण हेतु अपना भूमि कानून होता है एवम् पर्वतीय राज्यो को इस विषय में विषेष अधिकार प्राप्त है. परन्तु भू-कानून बहुत लचीला एवम् कमजोर है जबकि अन्य पर्वतीय राज्यो मे सषक्त भू कानून है।

फायदा

(क) उत्तराखंड के निवासी ही उत्तराखंड राज्य में निवास भूमि और व्यावसायिक भूमि को आधार में खरीद और बैंच सकता है इससे यह आपदा

होगा कि उत्तराखंड मे व्यवसाय के नाम पर जो कृषि भूमि का नाष हो रहा है उस पर रोकथाम लगेगी।

(ख) उत्तराखंड ने कृषि भूमि को खरीदने का अधिकार केवल मूल निवासी का होगा। इससे यह फायदा होगा कि मूल निवासियों की भूमि

सुरक्षित रहेगी और पलायन पर भी रोक लगेगी।

(ग) गैर उत्तराखंडी (बाहरी व्यक्ति) यदि उत्तराखंड राज्य मे निवा भूमि खरीदना चाहता है वह 250 वर्ग मीटर तक की भूमि को निकाल के लिए खरीद सकता है इससे यह फायदा होगा कि उत्तराखंड राज्य की सांस्कृतिक विरासत संस्कृति, भाषा, रीजि रिवाज संरक्षित रहेगे।

(घ) गैर उत्तराखंडी (बाहरी व्यक्ति) व्यावसायिक भूमि और कृषि भूमि को लीज पर ही ले सकता है वह कृषि भूनि और व्यावसायिक भूमि जो

खरीद नहीं सकता है। इससे यह फायदा होगा कि लीज पर दी गयी भूमि पर अधिकार तो उत्तराखंड के लोगों को रहेगा और जीजा दी गयी भूमि एक तो उपजाऊ रहेगी और उससे भू-स्वामी की आमदनी भी आती रहेगी

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