
सुशील बहुगुणा
आज जिस देश के गोदाम गेहूं – चावल से भरे पड़े हैं , वही देश हर साल एक लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल और दालें आयात करता है । इसी तरह सरकार हर साल आठ लाख करोड़ रुपये का पेट्रोलियम पदार्थ आयात करती है । इस भारी भरकम आयात से बचने के लिए सरकार गेहूं , धान और गन्ने से एथनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने की नीति पर काम कर रही है । इससे एक ओर पेट्रोलियम आयात पर निर्भरता कम होगी तो दूसरी ओर गेहूं , चावल के भंडारण में होने वाले भारी भरकम खर्च से बचा जा सकेगा ।
गोदाम गेहूं – चावल से पटे पड़े हैं । 2020 के खरीफ सत्र से पहले देश में 280 लाख टन चावल का भंडार था , जो पूरी दुनिया को खिलाने के लिए पर्याप्त है । एमएसपी पर सरकारी खरीद के चक्रव्यूह के कारण ही किसानों ने गन्ने की खेती को प्राथमिकता दी । इसका नतीजा चीनी के बंपर उत्पादन के रूप में सामने आया । इस साल सरकार ने 600 करोड़ रुपये की सब्सिडी देकर 60 लाख टन चीनी का निर्यात किया , क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमत 22 रुपये किलो है , जबकि भारत में समर्थन मूल्य पर गन्ने की खरीद से चीनी 34 रुपये किलो पड़ रही है । गेहूं , धान और गन्ने की खेती को मिली गलत प्राथमिकता का नतीजा यह हुआ कि दलहन , तिलहन और मोटे अनाजों की खेती पिछड़ती गई , जिससे उनकी पैदावार तेजी से घटी ।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि छोटे किसानों के पास अपनी उपज बेचने का नेटवर्क नहीं है । इन किसानों की मंडी व्यवस्था तक पहुंच बनाने के लिए सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक मंडी यानी ईनाम नामक पोर्टल शुरू किया है । इसके अलावा उत्पादन क्षेत्रों को खपत केंद्रों से जोड़ने के लिए किसान रेल चल रही है , जिससे बिना बिचौलिये के किसानों की उपज सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंच रही है । केंद्र सरकार छोटे किसानों को किसान उत्पादन संगठन ( एफपीओ ) से भी जोड़ रही है , ताकि वे बाजार अर्थव्यवस्था से कदमताल कर सकें । इन एफपीओ को किसी कंपनी जैसी सुविधाएं मिल रही हैं । स्पष्ट है कि कृषी क़ानून मे बदलावकर एक फसली खेती को बढ़ावा देने वाली एमएसपी से आगे बढ़कर बहुफसली खेती की ओर कदम बढ़ा रही है ।