
उत्तराखण्ड के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने विपक्षियों पर मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करने का खेल जोर-शोर से शुरू कर दिया है। बेशक जोर से ज्यादा शोर की अपनी आजमाई हुई शैली के साथ। अपने अच्छे दिनों में कांग्रेस भी यही करती थी।
अलग चाल चरित्र के दावे के साथ भाजपा ने अखिल भारतीय दल बनने के लिए साम दाम दण्ड भेद की नीति अपनाते हुए प्रतिद्वंद्वी दलों में तोड़फोड़ करने का जो सिलसिला शुरू किया था वह पश्चिम बंगाल को छोड़कर अधिकांशतः सफल रहा है।
उत्तराखण्ड में तो यह खेल विधानसभा के पिछले चुनाव में ही उसकी उम्मीदों से कहीं ज्यादा सफल रहा था। याद कीजिए तब सरकार गिराने- बचाने के लिए भाजपा और कांग्रेस के बीच हार्स ट्रेडिंग की चर्चाओं ने उत्तराखण्ड की छवि को कितना जबरदस्त नुकसान पहुंचाया था। लेकिन सत्ता के लिए राजनीति कुछ भी कर सकती है।
चर्चा में शामिल होते हैं,,,,,।