भौंकुछ -विक्रम बिष्ट- बाड़े खुले हैं


हाहाकार मचा कर बंदर कूद पड़ा लंका के अंदर। जैसे-जैसे उत्तराखण्ड विधानसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, उत्तराखण्ड की राजनीति में यह कूद-फांद तेज हो रही है। ठंड के मौसम में चुनावी तापमान चरम पर होगा । समझदार लोग बेसब्री से इंतजार करें।
कौन किस पाले में होगा उसको भी नहीं मालूम जो फांदने की उचित व्यवस्था के इंतजार में व्याकुल है। तय तो मदारी को करना है। जाहिर है मदारी दिल्ली में बैठे-बैठे खेलों की पटकथा लिख रहे हैं।
पटकथा में यह देखा जाएगा कि कौन अच्छे से नाचकर जनता को लुभा सकता है। जो खूब लुभाएग प्यारी जनता मतदान के दिन उस्तरा उसी को सौंपेगी। जी नहीं यह उछल-कूद उस उस्तरे से खुद को लहूलुहान करने के लिए नहीं हो रही है। यह पुण्य कार्य तो बाकी पांच साल के लिए जनता जनार्दन के मत्थे रहेगा।
फिलहाल तो अच्छे नचनिया की ठोक-पीठ तलाश है। अपने बाड़े की फसल इस मौके काम न आए तो किस मर्ज की दवा ? अपने बाड़े खुले हैं !

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