चुनावी चर्चा- विक्रम बिष्ट-खासा रोचक है टिहरी का लोकतांत्रिक इतिहास टिहरी की राजशाही और जनक्रांति पर बहुत कुछ लिखा गया है। काफी कुछ नहीं भी!


तख्ता पलट के बाद 15 जनवरी 1948 को देहरादून से एसडीओ और पुलिस सुपरिटेंडेंट ने दल-बल के साथ टिहरी पहुंच कर भारत सरकार की ओर से राज्य-काज की कमान संभाली। 16 फरवरी को। अंतरिम सरकार का गठन किया गया।
12 अगस्त 1948 को टिहरी में वयस्क मताधिकार के आधार पर विधानसभा के चुनाव हुए। प्रजामण्डल के 24 ,
दो आजाद उम्मीदवारों के साथ प्रजा हितैषिणी के 5 सदस्य निर्वाचित हुए। सभा की स्थापना पूर्व में राजा ने की थी।
18 मई 1949 को महाराजा मानवेंद्र शाह ने टिहरी को संयुक्त प्रांत (यूपी) में विलीनीकरण पर हस्ताक्षर कर दिए।
एक अगस्त को भारत सरकार ने विलय की घोषणा कर दी।
भारत में वयस्क मताधिकार से अक्टूबर 1951 से फरवरी 52 तक पहले आम चुनाव सम्पन्न हुआ। आजादी आंदोलन की अगुवाई करने वाली कांग्रेस को पूरे देश में प्रचण्ड बहुमत मिला। टिहरी में राज परिवार ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। राजमाता कमलेन्दुमति शाह लोकसभा और उनके उम्मीदवार लखनऊ विधानसभा पंहुच गये। यानी टिहरी के पहले आम चुनाव के लगभग सवा तीन साल में ही राज परिवार की संसदीय राजनीति में धूम-धाम से वापसी हो गई।
मजबूरी चाहे जिसकी रही हो 1957 के चुनाव में पूर्व नरेश मानवेंद्र शाह कांग्रेस के टिकट पर टिहरी से लोकसभा सदस्य चुने गए। वह लगातार तीन चुनाव जीते थे।
सन् 57 और 62 में देवप्रयाग विधानसभा क्षेत्र से शहीद श्रीदेव सुमन की पत्नी विनय लक्ष्मी कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुईं।
पांच साल बाद हुए चुनाव में देवप्रयाग के कांग्रेसियों ने विद्रोह कर दिया। इन्द्रमणि बडोनी निर्दलीय विधायक चुने गए। टिहरी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के त्रेपन सिंह नेगी दूसरी बार।
विधानसभा के चुनावों में लगातार चार बार जिले से किसी एक पार्टी के उम्मीदवार चुनाव नहीं जीते। कांग्रेस के विभाजन के बाद 1969 में हुए मध्यावधि चुनाव में टिहरी से भाकपा के गोविंद सिंह नेगी और देवप्रयाग से कांग्रेस संगठन ( ओ ) के बडोनी विधायक बने।
1974 में टिहरी से कामरेड नेगी दूसरी बार और कांग्रेस इ के गोविंद प्रसाद गैरोला देवप्रयाग से निर्वाचित हुए। सन् 77 के चुनाव में जनता पार्टी के त्रेपन सिंह नेगी लोकसभा चुनाव जीते लेकिन विधानसभा चुनाव पर उस लहर का कोई असर नहीं हुआ। नेगी टिहरी से लगातार तीसरी बार और इन्द्रमणि बडोनी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में देवप्रयाग से विजयी हुए।
1948 में वयस्क मताधिकार के आधार पर देश ही नहीं यूरोप और अमेरिका को पीछे छोड़ देने वाली टिहरी की राजनीति आज,,,,,

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