चुनाव चर्चा- विक्रम बिष्ट- घनसाली: मिथक टूटा पिछली बार।


2007 के विधानसभा चुनाव तक प्रतापनगर टिहरी गढ़वाल की पहली सीट थी। 2012 से यह सीट घनसाली का आबंटित है। इसलिए आगामी विधानसभा चुनावों की शुरुआती चर्चा भी यहीं से प्रारंभ करते हैं।
राजनीति में मिथक भी काम करते हैं। कभी कभी मान्यता थी कि उत्तरकाशी से जिस पार्टी का विधायक चुना जाता है, उत्तर प्रदेश में उसी पार्टी की सरकार बनती है। हालांकि पहले चुनाव में उत्तरकाशी से पूर्व राजपरिवार का निर्दलीय प्रत्याशी विधायक चुना गया था। प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी। फिर विधानसभा सीटों का नक्शा बदला, उत्तरकाशी जिला बना और राजनीति का स्वरूप भी। बलदेव सिंह आर्य लम्बे समय तक उत्तरकाशी से विधायक और मंत्री रहे।
उत्तराखण्ड बनने के बाद घनसाली से भी एक मिथक जुड़ गया लेकिन एकदम उलट। कहां जाने लगा कि घनसाली के विधायक को विपक्ष में ही बैठना पड़ता है। पहले, दूसरे और तीसरे चुनाव में ऐसा ही हुआ था।
पिछले चुनाव में यह मिथक टूटा, भाजपा प्रत्याशी विधायक चुना गया। प्रचण्ड बहुमत के साथ भाजपा की सरकार बनी। पहली बार मंत्री स्तर के दायित्व के साथ दूरगामी महत्त्व का भारी भरकम विभाग भी। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाले भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अब्बल सिंह बिष्ट भिलंगना के ब्लाक प्रमुख रहे हैं।
शक्ति लाल शाह ने भारी अंतर से यह चुनाव जीता था। पूर्व ब्लाक प्रमुख धनी लाल शाह को कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया था। वह निर्दलीय लड़े और दूसरे नंबर पर रहे। भाजपा छोड़ कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़े भीमलाल आर्य बुरी तरह पिछड़ गए।
विधायक शक्तिलाल के पिता गोबरू शाह क्षेत्र के प्रतिष्ठित सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता रहे थे। भाई एम, एल, शाह मसूरी नगर पालिका परिषद के अधिशासी अधिकारी हैं। इस पारिवारिक पृष्ठभूमि के साथ शक्ति लाल शाह की सबसे बड़ी पूंजी यह है कि उन्होंने अपने दामन को दागदार नहीं होने दिया। पार्टी के भीतर टिकट की चुनौती है, यह पूंजी उनके काम आयेगी ऐसा माना जाता है।
बहरहाल, हम विधायकों के कार्यों, जनापेक्षाओं और सभी से रचनात्मक चर्चा के प्रयास करेंगे।

Epostlive.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *