
15 अगस्त 1990 को प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मण्डल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा की थी। इसके विरोध में उत्तर भारत में जबरदस्त आंदोलन शुरू हुआ था। छात्रों द्वारा आत्मदाह जैसी दर्दनाक घटनाएं भी हुईं। ओबीसी आरक्षण लागू होना था और हुआ।
टिहरी में आंदोलनरत कुछ छात्र नेताओं के समक्ष हमने यह प्रस्ताव रखा था कि उत्तराखण्ड को पिछड़ा क्षेत्र घोषित कर आरक्षण में शामिल करने की मांग करनी चाहिए। उन्होंने जवाब दिया कि आप उत्तराखंड क्रांति दल वाले हो और इस बहाने उत्तराखंड राज्य की मांग आगे बढ़ाना चाहते हैं। उस आरक्षण विरोधी आंदोलन से उत्तराखंड को क्या हासिल हुआ?
1994 में मुलायम सिंह यादव ने शिक्षण संस्थाओं में ओबीसी आरक्षण की घोषणा की। याद है शासनादेश जारी होने के बाद टिहरी में बद्रीनाथ मंदिर में गजेन्द्र असवाल की अध्यक्षता में पहली बार इस मुद्दे पर बैठक हुई थी।
हालांकि उक्रांद अपनी पुरानी मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर चुका था। वर्तमान भिलंगना ब्लाक और घनसाली विधानसभा क्षेत्र पहले दो ब्लाक और दो विधानसभा क्षेत्रों में बंटा था। इन्द्र मणि बडोनी देवप्रयाग के विधायक रहे थे।
2 अगस्त 1994 में बडोनी जी के नेतृत्व में पौड़ी में शुरू हुआ आंदोलन इतिहास की अमिट धरोहर है, चाहे इस पर कितनी ही कालिख पोतने की कोशिश की जाए।
कीर्तिनगर क्षेत्र के बाद सबसे ज्यादा ग्राम प्रधान घनसाली से उस दिन पौड़ी पहुंचे थे।
यदि बडोनी जी और उनके सहयोगी आरक्षण के मुद्दे को उत्तराखंड राज्य की मांग से नहीं जोड़ते तो नतीजा क्या होता? शायद 1990 !
अब आज के मुद्दे पर आते हैं। उत्तर प्रदेश में महिलाओं को चालीस फीसदी टिकट देने की प्रियंका गांधी की घोषणा पर उत्तराखंड में सबसे सकारात्मक प्रतिक्रिया घनसाली से सामने आई है। पूर्व जिला पंचायत सदस्य कैलाशी देवी ने विधानसभा चुनाव में घनसाली से कांग्रेस टिकट के लिए दावेदारी की है। यह कोरी कल्पना नहीं क्या घनसाली फिर इतिहास बनाने वाला है?