
मां दुर्गा की आराधना का पावन पर्व शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ आज 07 अक्टूबर दिन गुरुवार से है। आज आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को अभिजित मुहूर्त में कलश स्थापना या घट स्थापना से नवरात्रि का विधिपूर्वक प्रारंभ होगा और मां दुर्गा के शैल पुत्री स्वरुप की आराधना की जाएगी। इस दिन से नौ दिन का व्रत भी रखा जाता है। शारदीय नवरात्रि मां दुर्गा् को प्रसन्न करने एवं उनका आशीष प्राप्त करने का उत्तम अवसर होता है। इस बार नवरात्रि 8 दिनों की है। दशहरा या विजयादशमी का पर्व 15 अक्टूबर को है।
कौन हैं 9 देवियां?
नवरात्र दो ऋतुओं के संधिकाल में स्वयं को तराशने व निखारने वाला बेहद विलक्षण और अदभुत नौ दिवसीय महापर्व है। अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक का यह महापर्व मनुष्य की आंतरिक ऊर्जाओं के भिन्न-भिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती है। इनको ही मान्यताएं नौ प्रकार की या देवियों की संज्ञा देती है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री, ये दरअसल किसी अन्य लोक में रहने वाली देवी से पहले मनुष्य की अपनी ही ऊर्जा के नौ निराले रूप हैं।
माँ शैलपुत्री-
वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा देवी के मंडपों में पहले नवरात्र के दिन होती है। शैलपुत्री अपने अस्त्र त्रिशूल की भांति हमारे त्रीलक्ष्य (धर्म, अर्थ और मोक्ष) के साथ मनुष्य के मूलाधार चक्र पर सक्रिय बल है। मूलाधार में पूर्व जन्मों के कर्म और समस्त अच्छे-बुरे अनुभव संचित रहते हैं। यह चक्र कर्म सिद्धांत के अनुसार यह चक्र प्राणी का प्रारब्ध निर्धारित करता है, जो अनुत्रिक के आधार में स्थित तंत्र और योग साधना की चक्र व्यवस्था का प्रथम चक्र है। यही चक्र पशु और मनुष्य के बीच में लकीर खींचता है। यह मानव के अचेतन मन (Subconscious Mind) से जुड़ा है। इस चक्र का सांकेतिक प्रतीक चार दल का कमल अंतःकरण यानी मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार द्योतक हैं।
माँ शैलपुत्री की शक्ति
कभी प्रजापति दक्ष की कन्या सती के रूप में प्रकट शैलपुत्री मूलाधार मस्तिष्क से होते हुए सीधे ब्रह्मांड का प्रथम संपर्क सूत्र है। यदि देह में शैलपुत्री को जगा लिया जाए, तो संपूर्ण सृष्टि को नियंत्रित करने वाली शक्ति शनैः शनैः देह में प्रकट होने लगती हैं। फलस्वरूप व्यक्ति विराट ऊर्जा में समा कर मानव से महामानव के रूप में तब्दील हो जाता है।
शैलपुत्री की सक्रियता से मन और मस्तिष्क का विकास होने लगता है। अंतर्मन में उमंग और आनंद व्याप्त हो जाता है। इनका जागरण न होने से मनुष्य विषय-वासनाओं में लिप्त होकर सुस्त, स्वार्थी, आत्मकेंद्रित होकर थका-थका सा दिखाई देता है। शैलपुत्री मनुष्य के कायाकल्प के द्वारा सशक्त और परमहंस बनाने का प्रथम सूत्र है। स्वयं में ध्यान-भजन के द्वारा इनकी तलाश देह में काम को संतुलित करके बाहर से चट्टान की शक्ति प्रदान करती है। मानसिक स्थिरता देती है।
इस मंत्र से करें माँ शैलपुत्री को प्रसन्न-
पूजा प्रारंभ करने से पूर्व सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें और इसके बाद विधि पूवर्क मां दुर्गा मां की पूजा करें. इस मंत्र का जाप करें-
