
हरेला
उत्तराखंड अपने तीज-त्योहारों, लोक पंरपराओं, लोक पर्वों के लिए विश्वविख्यात है. यहां मनाए जाने वाले लोक पर्वों में प्रकृति के प्रति अनूठा प्रेम दिखता है. प्रकृति से प्रेम करना सिखाता एक ऐसा ही त्योहार हरेला पर्व है. देवभूमि उत्तराखंड में ऋतुओं के अनुसार कई त्योहार मनाए जाते हैं, ये त्योहार यहां की परंपरा और संस्कृति को जीवंत रखे हुए हैं. हरेला का शाब्दिक अर्थ होता है हरियाली. श्रावण मास में हरेला का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह महीना भगवान शिव का विशेष महीना होता है. हरियाली और प्राकृतिक संरक्षण संवर्धन के प्रतीक इस पर्व के मौके पर लोगों द्वारा अपने इष्ट देवता और मंदिरों में हरेला चढ़ाने का परंपरा है.हरेला प्रकृति से जुड़ा हुआ पर्व है, जो प्राकृतिक के रक्षक भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है. हरेला के पूर्व संध्या पर हरकाली पूजन यानी डेकर पूजा की परंपरा है.इस पूजा में घर के आंगन से ही शुद्ध मिट्टी लेकर उससे भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाई जाती हैं. इसके बाद इन मूर्तियों को सुंदर रंगों से रंगा जाता है.
सूखने के पश्चात इनका श्रृंगार किया जाता है, जिसके बाद हरेला के सामने इन मूर्तियों को रखकर उनका पूजन किया जाता है और बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया जाता है. शास्त्रों के अनुसार हरेला से 9 दिन पहले पांच, सात या नौ अनाजों को मिलाकर बर्तन में मिट्टी रखकर अनाज को बोया जाता है. कैसे बोया जाता है हरेला?
हरेला पर्व से 9 दिन पहले इसे बोया जाता है. इसे बोने के लिए साफ मिट्टी का प्रयोग किया जाता है. घर के पास साफ जगह से मिट्टी निकालकर पहले सुखाई जाती है और फिर उसे छानकर टोकरी में जमा किया जाता है. इसके बाद 5 या 7 अनाज जैसे- मक्का, धान, तिल, भट्ट, जौ, उड़द और गहत डालकर इसे सींचा जाता है. हरेला को घर या मंदिर में भी बोया जाता है. घर में इसे मंदिर के पास रखकर पूरे 9 दिन तक देखभाल की जाती है और फिर 10वें दिन इसे काटकर अच्छी फसल की कामना के साथ देवी-देवताओं को समर्पित किया जाता है.
पहाड़ों में हरेला पर्व के बाद शुरू होता है सावन
मैदानी इलाकों में 4 जुलाई से ही सावन शुरू हो गया था,लेकिन आपको बता दें कि उत्तराखंड में हरेला पर्व से सावन मास की शुरुआत मानी जाती है. पहाड़ों में 17 जुलाई से सावन शुरू होगा. सावन महीने में हरेला पर्व का विशेष महत्व है, क्योंकि सावन भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना है. उत्तराखंड को भगवान शिव की भूमि भी कहा जाता है. मान्यता है कि घर में बोया जाने वाला हरेला जितना बड़ा होगा, पहाड़ के लोगों को खेती में उतना ही फायदा देखने को मिलेगा. कई जगहों पर सामूहिक रूप से गांव के पंचायत पांडाल या स्थानीय देवता के मंदिर में हरेला बोया जाता है, तो कहीं घर-घर में भी हरेला बोया जाता है.