
टिहरी
आंदोलन के अनुभव खट्टे और कड़ुवे होते हैं, जरूरी नहीं कि जीते जी परिणाम मीठे हों।
इनसे इतर कुछ घटनाएं होती हैं, जो कहती हैं कि कम से कम आज तो मुस्कुरा लीजिए ! उक्रांद नेता दिवाकर भट्ट गिरफ्तार कर टिहरी जेल लाए गए थे। वह तब कीर्तिनगर के ब्लॉक प्रमुख थे। लोक निर्माण विभाग की लापरवाही से एक जान गई थी। भट्ट जी की प्रतिरोध की अपनी शैली। मुकदमा दर्ज हुआ।
उनके पीछे श्रीनगर से आये कुछ लोगों ने उक्रांद की स्थानीय इकाई को बताये बिना टिहरी बंद का धमकी भरा एलान कर दिया और खुद निकल गए। उक्रांद कार्यकर्ताओं की मजबूरी थी। सुबह सबेरे बंद चक्काजाम में जुट गये।
कुछ घंटे बाद एसडीएम ताहिर इकबाल पुलिस के साथ बस अड्डे के समीप हवाघर पहुंचे। पुलिस ने गिरफ्तार किया और गाड़ी में बिठाकर थाना ले गये। गिरफ्तार करने वाले सब इंस्पेक्टर सिद्दौला से हमने कहा, हमने तो सुबह से कुछ खाया पिया नहीं है। उन्होंने पानी, चाय और समोसे मंगाए। मुझे लेकर पिछली तरफ ले जाकर दरवाजे की चिटकनी खोली और कहा, भैया तुम लोग राजनीतिक कैदी हो, यहां से भागना मत।
कुछ देर बाद थाना प्रभारी आये और बरामदे से बोले, अपना नाम बताओ. इधर से विक्रम बिष्ट। पता… उन्होंने अपने आप ही जोड़ दिया बम्बई। फिर तो विक्रम नेगी चण्डीगढ़, सुरेन्द्र रावत दिल्ली, परेंद्र सकलानी …।
काफी देर खामोशी रही। बाहर आकर देखा तो पुलिस कहीं नहीं। वह सिपाही भी नहीं जो शुरू में उलझ गया था। हम कमरे में जम गए। भट्ट जी रिहा होकर हमें लेने आये। उन्हें बताया गया था कि आपकी पार्टी के लड़के थाने में जाकर बैठे हैं और जिद कर रहे हैं कि आपके साथ ही बाहर आयेंगे।
पत्रकारों को भी यही बताया गया था कि हमने इन्हें गिरफ्तार नहीं किया। अपने आप आये और मनोरंजन कक्ष में बैठे गाने गा रहे हैं।
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