
टिहरी
उत्तराखण्ड क्रांति दल को खुद को साबित करने के जितने अवसर मिले हैं, बहुत कम उदाहरण हैं, गंवाने के भी। देश में जितने भी क्षेत्रीय राजनीतिक दल रहे आये हैं , उनकी पहचान जाति, भाषा, धर्म आधारित रही है। अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने और बचाने के लिए दुश्मन का डर दिखाना सबसे सरल उपाय है। कुछ लोग बलि चढ़ाए जाते हैं। खुद को सबसे बड़े राष्ट्रवादी साबित करने के लिए भी दुश्मन का हौव्वा । फायदे मिलें तो तुरंत गले पड़ने में क्या दिक्कत है? उत्तराखण्ड राज्य की अवधारणा देश के महत्वपूर्ण स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की धरोहर है।
उक्रांद को सबसे ज्यादा कोसा जाता है कि यह सत्ता के लिए कभी भाजपा, कभी कांग्रेस की गोद में बैठ जाता है। ऐसे आरोप लगाने वाले सभी बदनीयत हैं ऐसा नहीं कह सकते हैं।
आगे बात बढ़ाने से पहले दो छोटे लगने वाले बहुत महत्वपूर्ण उदाहरण याद करते हैं, उक्रांद जिनके माध्यम से उत्तराखण्ड राज्य की मौलिक अवधारणा को धरातल पर उतारने का प्रयास कर सकता था।
खण्डूड़ी सरकार में उक्रांद को मंत्रिमंडल मण्डल में महत्वपूर्ण स्थान देने के साथ इस नवोदित हिमालयी राज्य के अस्तित्व के लिए दो अधिक बड़ी जिम्मेदारी मिली थी। लेकिन वे सिर्फ सत्ता में थोड़ी सी हिस्सेदारी बन कर रह गई।
हम अगर अतीत में की गई या जाने-अनजाने गलतियों को रचनात्मक दृष्टि से स्वीकार करेंगे तो राह कुछ आसान होगी।
जय उत्तराखण्ड!