लोकसभा चुनाव बहिष्कार -विक्रम बिष्ट

टिहरी

लोकसभा चुनाव बहिष्कार -विक्रम बिष्ट 

यह माना जाता है कि 1996 का लोकसभा चुनाव बहिष्कार उत्तराखंड क्रांति दल के लिए आत्मघाती साबित हुआ है। उस दौर में उकांद की लोकप्रियता चरमोत्कर्ष पर थी। दल के नेतृत्व में गठित उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति में शामिल तिवाड़ी कांग्रेस ने चुनाव बहिष्कार के निर्णय से किनारा कर लोकसभा चुनाव लड़ा और पौड़ी गढ़वाल एवं नैनीताल सीटें जीतीं। पौड़ी से चुने गए सतपाल महाराज समिति के संरक्षक मण्डल में शामिल थे।
चुनाव बहिष्कार का सबसे ज्यादा असर टिहरी गढ़वाल सीट पर रहा था। भाजपा टिकट पर दूसरी बार चुनाव जीते मानवेन्द्र शाह भी एक लाख मतों का आंकड़ा नहीं छू पाये थे। इस सीट पर 1989 के लोकसभा चुनाव में उक्रांद उम्मीदवार इन्द्रमणि बडोनी को करीब डेढ़ लाख मत मिले थे। वह केन्द्रीय मंत्री ब्रह्मदत्त से लगभग 12 हजार मतों से हारे थे। दल के अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी भी अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा सीट पर कांग्रेस के हरीश रावत से लगभग आठ हजार मतों से हारे थे। माना जाता है कि उक्रांद ने चुनाव लड़ा होता तो ये दोनों सीटें इसके खाते में आतीं। भाजपा इन दोनों सीटों को बचाने में कामयाब रही थी।
माना जाता है कि उक्रांद की उस हिमालयी भूल के कारण ऐसी स्थितियां बनीं हैं,जिनमें उत्तराखण्ड की नीति-रीति राष्ट्रीय दलों के अपने नजरिये से तय होती हैं। लेकिन चुनाव बहिष्कार का निर्णय वास्तव में किसने और क्यों लिया था, उक्रांद नेता भी आज तक नहीं बता पाते हैं। कुछ नेता इसका ठीकरा स्व. इन्द्रमणि बडोनी के मत्थे डालते हैं। सच्चाई यह है कि यह निर्णय उक्रांद का नहीं बल्कि संयुक्त संघर्ष समिति का था। समिति का गठन बडोनी जी ने नहीं किया था। बेशक उसमें कांग्रेसियों की बड़ी घुसपैठ थी, खासकर दिल्ली से !
मौलिक त्रिहरि

Epostlive.com