कॉमन सिविल कोड(UCC) खोखले दावे : शान्ति प्रसाभट्ट उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी

टिहरी

कॉमन सिविल कोड(UCC) खोखले दावे : शान्ति प्रसाभट्ट उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी

नई बोतल में पुरानी शराब जैसा है यूसीसी उत्तराखंड की 4% जनजातीय जन संख्या पर लागू नहीं तो समान नागरिक संहिता कैसे हुई अधिवक्ताओं के रोज़ के कार्य पर इसका प्रभाव आज उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता/कॉमन सिविल कोड (UCC) लागू हो रहा है, जो पउत्तराखंड की लगभग 4%जनता (जनजाति) पर लागू नहीं होगा इसलिए यह समान नागरिक संहिता तो कतई नहीं है।
यह एक प्रकार की फिजूलखर्ची है, और उतराखंड को केवल प्रयोगशाला के रूप में प्रयोग किया जा रहा है,समान नागरिक संहिता एक वर्ग विशेष को तारगेट करता है।
एक देश एक संविधान एक विधान का नारा देने वाली भाजपा इसे पूरे उतराखंड में भी लागू नहीं कर पा रही है।
मिडिया रिपोर्ट के अनुसार 4%अनुसूचित जनजाति बाहुल्य इलाकों जैसे देहरादून, उत्तरकाशी, टिहरी, उधमसिंहनगर, चपावत, पिथौरागढ़, चमोली में यह लागु ही नही होगा?

कानूनीप्राविधान:

संविधान का भाग 4 नीति निदेशक तत्व:
अनुच्छेद 36से 51तक है, के अनुच्छेद 44 में यह कहा गया कि “राज्य/सरकार भारत के समस्त राज्यक्षेत्रों में नागरिको के लिए समान सिविल प्रक्रिया प्राप्त करने का प्रयास करेगी”जबकि अनुच्छेद 37 में ही कहा गया कि इस भाग में अंतर्विष्ट उपबंध किसी भी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नही होंगे अर्थात् नीति निदेशक तत्व एक सुझावात्मक है, बाध्यकारी नही है।
सामन नागरिक संहिता से मुलाधिकारो में छेड़ छाड़ होगी
मूलाधिकार संविधान का भाग 3
(अनुच्छेद 12से 35 )जिसे भारत का अधिकार पत्र (Magna Carta) भी कहा जाता है, इन मुलाधिकारों में छेड़ छाड़ नही की जा सकती है, यह संविधान का आधार भूत ढांचा है।पूर्व मे सुप्रीम कोर्ट ने अनेकों केसेस में कहा है, कि विधायिका कोई भी कानून बनाए पर मूलाधिकारो से छेड़ छाड़ न करे
🔹समता का अधिकार
(अनुच्छेद 14से 18)
🔹स्वतंत्रता का अधिकार
(अनुच्छेद 19से 22)
🔹शोषण के विरुद्ध अधिकार
(अनुच्छेद 23से 24)
🔹धर्म की स्वतंत्रता
(अनुच्छेद 25से 28)
🔹संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार
(अनुच्छेद 29से 30)
🔹संवैधानिक उपचारों का अधिकार
(अनुच्छेद 32से 35)
(नोट: प्रारंभ में 7मूलाधिकार थे, 1979में 44वें संविधान संशोधन द्वारा संपत्ति के अधिकार 7को मौलिक अधिकार से हटाकर कानूनी अधिकार बना दिया है।)
यूसीसी ड्राफ्ट के जो प्रमुख बिंदु अखबारों में छपे है वे पहले से ही काननू में है जैसे
तलाक पर पत्नी को पति जैसे अधिकार होंगे:
यह व्यवस्था पूर्व से ही हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अधीन लागू है, किंतु अनुसूचित जनजातियों में अधिकाशत: यह लागु नहीं है ।
बहुविवाह पर रोक : यह व्यवस्था भी पूर्व से कानूनन लागू है, द्वि विवाह को दंडनीय अपराध है, भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 494 के अनुसार एक जीवित पत्नी या पति के होते हुए दूसरी शादी करना अपराध है, और इस अपराध में दोषी पाए जाने पर 07साल की सजा और अर्थदंड लगाया जाता है, हिंदु विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5 में भी द्वि विवाह अपराध है,यधपि द्वितीय शादी तभी की जा सकती है जब किसी महिला या पुरुष की पति या पत्नी की मृत्यु हो चुकी हो या उन्होंने सक्षम न्यायालय से विधिवत तलाक ले लिया हो।
गोद लेना आसान होगा : यह व्यवस्था भी पूर्व से कानून में है “हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियाम 1956 के अनुसार कोई हिंदू (सिख, जैन, बौद्ध) सहित जिसकी उम्र 21 वर्ष हो चुकी हो दत्तक ग्रहण कर सकता है, अन्य प्राविधान भी है।
विवाह कीआयु 18 और 21
(महिला उम्र 18 वर्ष और पुरुष की 21वर्ष): यह प्राविधान भी पूर्व से कानून में है।
हिंदू विवाह अधिनियम 1955,
भारतीय क्रिश्चियन विवाह अधिनियम 1872
मुस्लिम विवाह कानून : सुन्नी मुस्लिम के लिए नफी कानून और शिया मुस्लिम इस्नाआशरी कानून है ,और इन सभी में विवाह की उम्र महिला 18वर्ष और पुरुष 21वर्ष ही है। जबकि *मुस्लिम विवाह एक संविदा है।

विशेष विवाह अधिनियम 1954 इस कानून के अनुसार यदि कोई हिंदू मुस्लिम महिला से शादी करता है, या कोई मुस्लिम हिंदू महिला से शादी करता है या अन्य धर्म के महिला पुरुष शादी करते है तो वे विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत होंगे और इसमें भी महिला की उम्र 18तथा पुरुष की 21वर्ष ही है।
इसके साथ ही देश में
बाल विवाह अवरोध अधिनियम 1929 भी है, जो किसी 18वर्ष की कम उम्र की लड़की के विवाह को निषेध करता है।
भरण पोषण : महिलाओं और वृद्ध माता पिता के लिए पूर्व से ही दंड प्रक्रिया संहिता1973 (Crpc) की धारा 125 में भरण पोषण की व्यवस्था है और यह सभी धर्मो की महिलाओ पर लागू है, इसके अनुसार “प्रत्येक धर्म की महिलाएं अपने पति से भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारिणी है
महिलाओ को संपत्ति में अधिकार* हिंदु उतराधिकार अधिनयम 1956 की धारा 6 के अनुसार मृतक के बेटे, बेटी उसकी पत्नी उसकी मां के बीच बराबर हिस्से बंटेंगे। और वर्ष 2005 में महिलाओं के नाम खाता खतौनी में जुड़ने भी लगे है।कोई भी महिला अपनी संपत्ति की वसीयत कर सकती है, भुमि खरीद सकती है विक्रय कर सकती है
अनुच्छेद 39क महिलाओं को निशुल्क विधिक सहायता भी प्रदान करता है।

संविधान कि सातवीं अनुसूची में केंद्र और राज्यों के बीच कार्यों का बंटवारा विषयवार किया गया है
जिनमे :
संघ सूची
(Union catalog ) 100विषय
राज्य सूची
(state list) 61 विषय
समवर्ती सूची
(concurrent list) 52विषय
समवर्ती सूची में केंद्र और राज्य दोनो एक ही विषय पर कानून बना सकते है, किंतु केन्द्रीय कानून ही सर्वमान्य होगा जो *अंब्रेला लॉ* होगा और तब राज्यों का बना कानून निष्प्रभावी/या केन्द्रीय कानून में विलय कर जायेगा, चुकीं *समान नागरिक संहिता भी समवर्ती सूची का ही विषय है* और देश के अनेकों राज्यों सहित केंद्र में भी भाजपा की सरकार है तो केन्द्रीय सरकार क्यो नही सामान नागरिक संहिता कानून बनाती है ताकि वह सम्पूर्ण देश में सामान रूप से लागू हो

केवल उतराखंड को क्यो प्रयोगशाला बनाया जा रहा है।
समान नागरिक संहिता लागु करने से पहले सरकार सुप्रीम कोर्ट के इन मार्गदर्शी वादों को ठीक से पढ़ ले

मौलिक अधिकार
आधार भूत ढाँचे का सिद्धांत
(Basic features)
◾मेनका गांधी बनाम भारत संघAIR 1979
◾एम नागराज बनाम भारत संघAIR 2007
◾गोकल नाथ बनाम भारत संघ AIR 1971
◾शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ AIR 1951
◾सज्जन सिंह बनाम राजस्थान राज्य AIR 1965
◾केशवानंद भारती बनाम भारत संघ AIR 1974
◾गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य AIR 1971
◾मिनर्वामिल् बनाम भारत संघAIR 1980
प्रतिपक्ष के सवाल:
समान नागरिक संहिता समवर्ती सूची का विषय है, तो केंद्र सरकार क्यों नहीं बनाती कानून ताकी केंद्र का बना कानून पुरे देश में अंब्रेला लॉ के रूप में काम करे ।
धामी सरकार बताए उतराखंड में किस के लिए ला रहे है यह कानून चुकी प्रदेश की एक बड़ी आबादी पर इसके प्राविधान पूर्व से ही कानून में है
अनुसूचित जनजाति क्षेत्र की आबादी जो राज्य के 6से 7जिलों में है उन पर लागू होगा या नहीं
धामी सरकार बताए क्या राज्य सरकार को संविधान में संशोधन की शक्ति है या नही
धामी सरकार बताए क्या राज्य को सेंटर एक्ट्स में संशोधन की शक्ति है
भारत विविधताओं का देश है यहां अतीत से ही धर्म पर आधारित पर्सनल लॉ बने हुए है, जैसे हिंदु पर्सनल लॉ, मुस्लिम पर्सनल लॉ तो क्या राज्य को इन पर्सनल लॉ में संशोधन की शक्ति है
क्यो उत्तराखंड को प्रयोगशाला बनाया जा रहा है।
प्रदेश भर के अधिवक्ताओं के कामों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा
क्या ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, निगम इसके लिए तैयार है, और उनके पास पर्याप्त स्टाफ है ।

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