
टिहरी। पर्यावरणविद व पदम विभूषण सुन्दरलाल बहुगुणा के निधन पर टिहरी में शोक की लहर है। चिपको जैसे आन्दोलन से विश्व में ख्याति प्राप्त करने वाले सुन्दर लाल बहुगुणा का जन्म टिहरी के मरोड़ा गांव में 7 जनवरी 1927 को हुआ था। बहुगुणा मात्र 13 साल की उम्र में आजादी के आन्दोलन में कूद गये थे। 1956 में बहुगुणा ने टिहरी के सिल्यारा में पर्वतीय नवजीवन मंडल आश्रम की स्थापना की और बालिकाओं के लिये स्कूल खोला। ग्रामीणों के बीच जाकर छुआछूत, शराब बंदी व कुरीतियों के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया। 1960 में आचार्य विनोवा भावे के आह्वान पर इन्होंने पैदल गांवों की यात्रा शुरू की और ग्रामीणों को स्वाबलंबन का संदेश दिया। 1965 से इन्होंने अंग्रेजी शराब की दुकानों के खिलाफ महिलाओं व अपने सहयोगियों की मदद से आंदोलन छेड़ दिया। 1971 में अंग्रेजी शराब की दुकान के बाहर सत्याग्रह करते हुए वे उपवास पर बैठ गये। 1972 में तेजी से घटते वनों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए पूरे पर्वतीय क्षेत्र में उन्होंने 5 हजार किमी की पैदल यात्रा की। जिससे प्रेरित होकर पहले चमोली के रेणी व फिर टिहरी के अदवाणी खुरेत व बड़ियार गढ़ ग्रामीण पेड़ कटने से बचाने के लिए पेड़ों पर चिपक गये। पहले तक वृक्षों के संबंध में आम धारणा यह थी कि इनसे केवल लीसा, लकड़ी व अन्य उत्पाद ही मिलते हैं लेकिन चिपको आंदोलन के जरिये उन्होंने एक नया संदेश अपने नारे के माध्यम से दिया कि वृक्षों की सबसे अमूल्य देन प्राण वायु यानि आॅक्सीजन है। इसके लिए उनका नारा था- क्या हैं जंगल के उपकार, मिटटी पानी और बयार, मिटटी पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार। टिहरी बांध विरोधी आंदोलन के दौरान उन्होंने 6 बार 11 दिन से लेकर 74 दिन तक के उपवास किये जिसके बाद भारत सरकार को टिहरी बांध परियेाजना का सुरक्षा की दृष्टि से रिव्यू करना पड़ा।